अप्रैल 29, 2023, शनिवार

पास्का का तीसरा सप्ताह

📒 पहला पाठ :प्रेरित-चरित . 9:31-42

31) उस समय समस्त यहूदिया, गलीलिया तथा समारिया में कलीसिया को शान्ति मिली। उसका विकास होता जा रहा था और वह, प्रभु पर श्रद्धा रखती हुई और पवित्र आत्मा की सान्त्वना द्वारा बल प्राप्त करती हुई, बराबर बढ़ती जाती थी।

32) पेत्रुस, चारों ओर दौरा करते हुए, किसी दिन लुद्दा में रहने वाली ईश्वर की प्रजा के यहाँ भी पहुँचा।

33) वहाँ उसे ऐनेयस नामक अद्र्धांगरोगी मिला, जो आठ वर्षों से बिस्तर पर पड़ा हुआ था।

34) पेत्रुस ने उस से कहा, “ऐनेयस! ईसा मसीह तुम को स्वस्थ करते हैं। उठो और अपना बिस्तर स्वयं ठीक करो।” और वह उसी क्षण उठ खड़ा हुआ।

35) लुद्दा और सरोन के सब निवासियों ने उसे देखा और वे प्रभु की ओर अभिमुख हो गये।

36) योप्पे में तबिया नामक शिष्या रहती थी। तबिथा का यूनानी अनुवाद दोरकास (अर्थात् हरिणी) है। वह बहुत अधिक परोपकारी और दानी थी।

37) उन्हीं दिनों वह बीमार पड़ी और चल बसी। लोगों ने उसे नहला कर अटारी पर लिटा दिया।

38) लुद्दा योप्पे से दूर नहीं है और शिष्यों ने सुना था कि पेत्रुस वहाँ है। इसलिए उन्होंने दो आदमियों को भेज कर उस से यह अनुरोध किया कि आप तुरन्त हमारे यहाँ आइए।

39) पेत्रुस उसी समय उनके साथ चल दिया। जब वह योप्पे पहुँचा, तो लोग उसे उस अटारी पर ले गये। वहाँ सब विधवाएं रोती हुई उसके चारों ओर आ खड़ी हुई और वे कुरते और कपड़े दिखाने लगीं, जिन्हें दोरकास ने उनके साथ रहते समय बनाया था।

40) पेत्रुस ने सबों को बाहर किया और घुटने टेक कर प्रार्थना की। इसके बाद वह शव की ओर मुड़ कर बोला, “तबिथा, उठो! उसने आँखे खोल दीं और पेत्रुस को देख कर वह उठ बैठी।

41) पेत्रुस ने हाथ बढ़ा कर उसे उठाया और विश्वासियों तथा विधवाओं को बुला कर उसे जीता-जागता उनके सामने उपस्थित कर दिया।

42) यह बात योप्पे में फैल गयी और बहुत-से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया।

📚 सुसमाचार : योहन 6:60-69

60) उनके बहुत-से शिष्यों ने सुना और कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है?”

61) यह जान कर कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे हैं, ईसा ने उन से कहा, “क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो?

62) जब तुम मानव पूत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे, जहाँ वह पहले था, तो क्या कहोगे?

63) आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, मांस से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम्हे जो शिक्षा दी है, वह आत्मा और जीवन है।

64) फिर भी तुम लोगों में से अनेक विश्वास नहीं करते।” ईसा तो प्रारम्भ से ही यह जानते थे कि कौन विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा।

65) उन्होंने कहा, “इसलिए मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक उसे पिता से यह बरदान न मिला हो”।

66) इसके बाद बहुत-से शिष्य अलग हो गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया।

67) इसलिए ईसा ने बारहों से कहा, “कया तुम लोग भी चले जाना चाहते हो?”

68) सिमोन पेत्रुस ने उन्हें उत्तर दिया, “प्रभु! हम किसके पास जायें! आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है।

69) हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष हैं।”