August 01

पहला पाठ : यिरमियाह 28:1-17

1) यूदा के राजा योशीया के शासनकाल के प्रारम्भ में, चैथे वर्ष के पाँचवें महीने में अज्जूर के पुत्र हनन्या- गिबओन में रहने वाले नबी- ने प्रभु के मन्दिर में याजकों तथा समस्त जनता के सामने यिरमियाह से यह कहा,

2) “विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं बाबुल के राजा का जूआ तोडूँगा।

3) मैं ठीक दो वर्ष बाद प्रभु के मन्दिर के वे सब सामान वापस ले आऊँगा जिन्हें बाबुल का राजा नबूकदनेज़र यहाँ से बाबुल ले गया था।

4) यहोयाकीम के पुत्र, यूदा के राजा यकोन्याह को और यूदा के सब निर्वासितों को भी मैं बाबुल से यहाँ वापस ले आऊँगा- यह प्रभु की वाणी है- क्योंकि मैं बाबुल के राजा का जूआ तोड़ूँगा।“

5) किन्तु नबी यिरमियाह ने सब याजकों समस्त जनता के सामने नबी हनन्या को सम्बोधित करते हुए कहा,

6) “एवमस्तु! प्रभु ऐसा ही करें! प्रभु तुम्हारी भवियवाणी पूरी करे और प्रभु के मन्दिर के सब सामान और सब निर्वासितों को भी वापस ले आये।

7) किन्तु जो बात मैं तुम को और सारी जनता को बताने जा रहा हूँ, उसे ध्यान से सुनो।

8) तुम्हारे और मेरे पहले जो नबी थे, वे प्राचीन काल से, शक्तिशाली देशों और बड़े राज्यों के लिए युद्ध, विपत्ति और महामारी की भवियवाणी करते आ रहे हैं।

9) जो नबी शान्ति की भवियवाणी करता है, वह तभी प्रभु का भेजा हुआ नबी माना जा सकता है, जब उसकी भवियवाणी पूरी हो जाये।“

10) इस पर नबी हनन्या ने नबी यिरमियाह के कन्धे पर से जूआ उतारा और उसे तोड़ डाला।

11) तब हनन्या समस्त जनता के सामने यह बोला, “प्रभु यह कहता है: मैं इसी तरह बाबुल के राजा नबूकदनेज़र का जूआ तोड़ूँगा। मैं ठीक दो वर्ष बाद उसे सब राष्ट्रों के कन्धे पर से उतार कर तोड़ दूँगा।“ इसके बाद नबी यिरमियाह अपनी राह चला गया।

12) जब हनन्या ने नबी यिरमियाह के कन्धे पर से जूआ उतार कर तोड़ दिया था, तो उस के थोड़े समय बाद प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई दी,

13) “जाओ और हनन्या से कहो- यह प्रभु की वाणी है। तुमने लकड़ी का जूआ तोड़ा, इसके बदले लोहे का जूआ आयेगा;

14) क्योंकि विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं सब राष्ट्रों के कन्धे पर लोहे का जूआ रखने जा रहा हूँ। वे सब बाबुल के राजा नबूकदनेज़र के अधीन होंगे। मैंने बनैले पशुओं को भी उसके अधीन कर दिया है।“

15) नबी यिरमियाह ने नबी हनन्या से कहा, “हनन्या! ध्यान से मेरी बात सुनो! प्रभु ने तुम को नहीं भेजा है। तुमने इस प्रजा को झूठी आशा दिलायी है।

16) इसलिए प्रभु यह कहता हैः मैं तुम को इस पृथ्वी पर से मिटा दूँगा। तुम इसी वर्ष मर जाओगे; क्योंकि तुमने प्रभु के विरुद्ध विद्रोह का प्रचार किया है।“

17) उसी वर्ष के सातवें महीने नबी हनन्या का देहान्त हो गया।

सुसमाचार : मत्ती 14:22-36

22) इसके तुरन्त बाद ईसा ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उन से पहले उस पार चले जायें; इतने में वे स्वयं लोगों को विदा कर देंगे।

23) ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढे़। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे।

24) नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी।

25) रात के चैथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।

26) जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, “यह कोई प्रेत है”, डर के मारे चिल्ला उठे।

27) ईसा ने तुरन्त उन से कहा, “ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।”

28) पेत्रुस ने उत्तर दिया, “प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की अज्ञा दीजिए”।

29) ईसा ने कहा, “आ जाओ”। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा;

30) किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, “प्रभु! मुझे बचाइए”।

31) ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, “अल़्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?”

32) वे नाव पर चढे और वायु थम गयी।

33) जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया “आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं”।

34) वे पार उतर कर गेनेसरेत पहुँचे।

35) वहाँ के लोगों ने ईसा को पहचान लिया और आसपास के गाँवों में इसकी ख़बर फैला दी। वे सब रोगियों को ईसा के पास ले आ कर

36) उन से अनुनय-विनय करते थे कि वे उन्हें अपने कपड़े का पल्ला भर छूने दें। जितनों ने उसका स्पर्श किया, वे सब-के-सब अच्छे हो गये।