August 02
पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 30:1-2,12-15,18-22
1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
2) इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता है – ’मैंने जो कुछ तुम से कहा, वह सब एक पुस्तक में लिख लो ;
12) “प्रभु यह कहता है- तुम्हारी बीमारी कभी अच्छी नहीं होगी। तुम्हारे घावों पर कोई इलाज नहीं है।
13) तुम्हारा कोई पक्षधर नहीं है। तुम्हारे घाव नहीं भरेंगे।
14) तुम्हारे सभी प्रेमियों ने तुम को भुला दिया; वे तुम्हारी कोई परवाह नहीं करते, क्योंकि तुम्हारे असंख्य अपराधों और पापों के कारण मैंने तुम को शत्रु की तरह मारा और घोर दण्ड दिया है।
15) तुम अपने घावों पर क्यों रोती हो? तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नहीं। तुम्हारे असंख्य अपराधों और पापों के कारण ही मैंने तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया है।
18) “प्रभु यह कहता है- मैं याकूब के तम्बुओं को फिर खड़ा करूँगा। मैं उसके घरों पर दया करूँगा। खँडहरों पर नगर का पुननिर्माण होगा और अपने पुराने स्थान पर गढ़ का पुनरुद्धार होगा।
19) उन में से स्तुतिगान और आनन्दोत्सव की ध्वनि सुनाई देगी। मैं उनकी संख्या बढ़ाऊँगा, वह फिर कभी नहीं घटेगी। मैं उन्हें सम्मान प्रदान करूँगा, उनका फिर कभी तिरस्कार नहीं किया जायेगा।
20) उनकी सन्तति पहले-जैसी होगी और उनका समुदाय मेरे सामने बना रहेगा। मैं उनके सब अत्याचारियों को दण्ड दूँगा।
21) उन में से एक उनका शासक बनेगा और उनके बीच में से उनका राजा उत्पन्न होगा। मैं स्वयं उसे अपने पास बुलाऊँगा और वह मेरे पास आयेगा; क्योंकि कोई भी अपने आप मेरे पास आने का साहस नहीं करता। यह प्रभु की वाणी है।
22) तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।“
सुसमाचार : मत्ती 14:22-36
22) इसके तुरन्त बाद ईसा ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उन से पहले उस पार चले जायें; इतने में वे स्वयं लोगों को विदा कर देंगे।
23) ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढे़। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे।
24) नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी।
25) रात के चैथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।
26) जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, “यह कोई प्रेत है”, डर के मारे चिल्ला उठे।
27) ईसा ने तुरन्त उन से कहा, “ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।”
28) पेत्रुस ने उत्तर दिया, “प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की अज्ञा दीजिए”।
29) ईसा ने कहा, “आ जाओ”। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा;
30) किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, “प्रभु! मुझे बचाइए”।
31) ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, “अल़्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?”
32) वे नाव पर चढे और वायु थम गयी।
33) जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया “आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं”।
34) वे पार उतर कर गेनेसरेत पहुँचे।
35) वहाँ के लोगों ने ईसा को पहचान लिया और आसपास के सब गाँवों में इसकी ख़बर फैला दी। वे सब रोगियों को ईसा के पास ले आ कर
36) उन से अनुनय-विनय करते थे कि वे उन्हें अपने कपड़े का पल्ला भर छूने दें। जितनों ने उसका स्पर्श किया, वे सब-के-सब अच्छे हो गये।