गुरुवार, 03 अगस्त, 2023
सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह
📒 पहला पाठ : निर्गमन 40:16-21, 34-38
16) प्रभु ने जो कुछ कहा था, मूसा ने वह सब पूरा किया।
17) दूसरे वर्ष के प्रथम महीने, उस महीने के प्रथम दिन, निवास का निर्माण हुआ।
18) मूसा ने निवास का निर्माण किया। उसने जमीन में र्कुसियाँ डाल दीं और उन पर तख्ते रख कर और छड़ बाँध कर खूँटे खड़े किये।
19) उसने निवास पर तम्बू ताना और उसके ऊपर तम्बू का आवरण रख दिया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।
20) उसने विधान की पाटियाँ मंजूषा में रखीं, मंजूषा में डण्डे लगाये और उस पर छादन-फलक रखा।
21) उसने मंजूषा निवास में रख कर उसके सामने एक अन्तरपट लगाया और इस प्रकार विधान की मंजूषा आँखों से ओझल कर दी, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।
34) तब एक बादल ने दर्शन-कक्ष को ढक लिया और प्रभु की महिमा निवास में भर गयी।
35) मूसा तम्बू में प्रवेश नहीं कर सका, क्योंकि बादल उसे छाये रहता था और निवास प्रभु की महिमा से भर गया था।
36) समस्त यात्रा के समय इस्राएली तभी आगे बढ़ते थे, जब बादल निवास पर से उठ कर दूर हो जाता था।
37) जब बादल नहीं उठता, तो वे प्रतीक्षा करते रहते।
38) उनकी समस्त यात्रा के समय प्रभु का बादल दिन में निवास के ऊपर छाया रहता था, किन्तु रात को बादल में आग दिखाई पड़ती, जिसे सभी इस्राएली देख सकते थे।
📒 सुसमाचार : मत्ती 13:47-53
47) ’’फिर, स्वर्ग का राज्य समुद्र में डाले हुए जाल के सदृश है, जो हर तरह की मछलियाँ बटोर लाता है।
48) जाल के भर जाने पर मछुए उसे किनारे खींच लेते हैं। तब वे बैठ कर अच्छी मछलियाँ चुन-चुन कर बरतनों में जमा करते हैं और रद्दी मछलियाँ फेंक देते हैं।
49) संसार के अन्त में ऐसा ही होगा। स्वर्गदूत जा कर धर्मियों में से दुष्टों को अलग करेंगे।
50) और उन्हें आग के कुण्ड में झोंक देंगे। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।
51) ’’क्या तुम लोग यह सब बातें समझ गये?’’ शिष्यों ने उत्तर दिया, ’’जी हाँ’’।
52) ईसा ने उन से कहा, ’’प्रत्येक शास्त्री, जो स्वर्ग के राज्य के विषय में शिक्षा पा चुका है, उस ग्रहस्थ के सदृश है, जो अपने ख़जाने से नयी और पुरानी चीज़ें निकालता है’’।
53) इन दृष्टान्तों के समाप्त होने पर ईसा वहाँ से चले गये।