बुधवार, 09 अगस्त, 2023

वर्ष का अठारहवाँ सामान्य सप्ताह

📒 पहला पाठ : गणना ग्रन्थ 13:1-2.25-14:1.26-29.34-35

1) प्रभु ने मूसा से कहा,

2) ”जो कनान देश में इस्राएलियों को देने जा रहा हूँ, उसकी टोह लगाने के लिए आदमियों को भेजो – हर एक वंश से एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को।”

25) चालीस दिन बाद वे उस देश की टोह लगा कर लौटे।

26) वे पारान की मरुभूमि के कादेश नामक स्थान पर मूसा, हारून और इस्राएल के सारे समुदाय के पास आये। उन्होंने उनके और सारे समुदाय के सामने अपना विवरण प्रस्तुत किया और उन्हें उस देश के फल दिखाये।

27) उन्होंने मूसा से कहा, ”हम उस देश में गये, जहाँ आपने हमें भेजा था। वहाँ दूध और मधू की नदियाँ बहती हैं। ये रहे वहाँ के फल!

28) वहाँ के निवासी बलवान् है। उनके नगर सुरक्षित और बहुत बड़े हैं। हमने वहाँ अनाक के वंशजों को भी देखा है।

29) नेगेब प्रदेश में अमालेकी रहते है ; पहाड़ी प्रदेश में हित्ती, यबूसी और अमोरी; समुद्र के किनारे और यर्दन नदी के तट पर कनानी निवास करते हैं।

30) कालेब ने मूसा के विरुद्ध भुनभुनाने वाले लोगों को शान्त किया और कहा, ”हम वहाँ चलें और उस देश को अपने अधिकार में कर लें। हम उसे जीतने में समर्थ हैं।”

31) किन्तु जो व्यक्ति कालेब के साथ गये थे, वे बोले, ”हम उन लोगों का सामना नहीं कर सकते, क्योंकि वे हम से बलवान् हैं।

32) वे जिस देश की टोह लगा चुके थे, उसकी निन्दा करने लगे और बोले, ”हम जिस देश की टोह लगा चुके हैं, वह एक ऐसा देश है, जो अपने निवासियों को खा जाता है। हमने जिन लोगों का वहाँ देखा है, वे सब बहुत लम्बे कद के हैं।

33) हमने वहाँ भीमकाय लोगों को भी देखा। अनाकी भीमकाय लोगों के वंशज हैं। उनकी तुलना में हम अपने को टिड्डियाँ समझते थे और वे भी हमें यही समझते होंगे।”

1) सारा समुदाय ये बातें सुन कर ज़ोर से चिल्लाने लगा और रात भर विलाप करता रहा।

26) प्रभु ने मूसा और हारून से यह कहा,

27) ”मैं कब तक इस दुष्ट समुदाय की शिकायतें सहन करता रहूँ? मैं इस्राएलियों से अपनी शिकायतें सुन चुका हूँ।

28) उन्हें यह बता दो – प्रभु कहता है, “अपने अस्तित्व की शपथ! मैंने तुम लोगों को जो बातें कहते सुना है, उन्हीं के अनुसार मैं तुम्हारे साथ व्यवहार करूँगा।

29) यहाँ इस मरूभूमि में तुम्हारे शव पड़े रहेंगे, क्योंकि तुम लोगों ने मेरी शिकायत की है। जितने लोगों के नाम जनगणना के समय लिखे गये थे और जिनकी आयु बीस के ऊपर है,

34) तुम लोगों ने चालीस दिन तक उस देश का निरीक्षण किया। उनका हर दिन एक वर्ष गिना जायेगा। इसके अनुसार तुम्हें चालीस वर्ष तक अपने अपराधों का फल भुगतना पड़ेगा और तुम जान जाओगे कि मेरा विरोध करने का फल क्या होता है।

35) मैं प्रभु यह कह चुका हूँ। इस दुष्ट समुदाय ने मेरा विरोध किया है। मैं इसके साथ यही व्यवहार करूँगा। यह इस मरूभूमि में समाप्त हो जायेगा। ये लोग सब-के-सब यहाँ मर जायेंगे।”

📒 सुसमाचार : मत्ती 15:21-28

21) ईसा ने वहाँ से बिदा होकर तीरूस और सिदोन प्रान्तों के लिए प्रस्थान किया।

22) उस प्रदेश की एक कनानी स्त्री आयी और पुकार-पुकार कर कहती रही, ’’प्रभु दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।’’

23) ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया। उनके शिष्यों ने पास आ कर उनसे यह निवेदन किया, ’’उसकी बात मानकर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती आ रही है’’।

24) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मैं केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।

25) इतने में उस स्त्री ने आ कर ईसा को दण्डवत् किया और कहा, ’’प्रभु! मेरी सहायता कीजिए’’।

26) ईसा ने उत्तर दिया, ’’बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है’’।

27) उसने कहा, ’’जी हाँ, प्रभु! फिर भी स्वामी की मेज़ से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं’’।

28) इस पर ईसा ने उत्तर दिया ’’नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।’’ और उसी क्षण उसकी बेटी अच्छी हो गयी।