August 12

पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 16:1-15,60,63

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,

2) “मानवपुत्र! येरुसालेम को उसके वीभत्स कर्मों का विवरण सुनाओं।

3) उस से कहोः प्रभु-ईश्वर येरुसालेम से यह कहता है- वंश और जन्म ही दृष्टि से तुम कनानी हो। तुम्हारा पिता अमोरी था और तुम्हारी माता हित्ती थी।

4) जन्म के समय तुम्हारी नाल नहीं काटी गयी, शुद्धीकरण के हेतु तुम को पानी से नहीं नहलाया गया। लोगों ने तुम्हारे शरीर पर नमक नहीं लगाया और तुम को कपड़ों में नहीं लपेटा।

5) किसी ने भी तुम्हारे लिए यह सब करने की परवाह नहीं की। किसी को को भी तुम पर ममता नहीं हुई। तुम्हारे जन्म के दिन तुम को घृणित समझ कर खुले मैंदान में छोड़ दिया गया।

6) “उस समय मैं तुम्हारे पास से हो कर जा रहा था। मैंने तुम को तुम्हारे अपने रक्त में लोटता हुआ देखा और तुम से, जो अपने रक्त से सनी हुई थी, कहा- जीती रहो, जीती रहो!

7) तुम मेरी देखरेख में खेत के फूल की तरह बढ़ती गयी। तुम बढ़ कर बड़ी हो गयी। तुम बहुत सुन्दर थी। तुम्हारे स्तन उठने और तुम्हारे केश बढ़ने लगे, किन्तु तुम उस समय तक नग्न और विवस्त्र थी।

8) “जब मैं दुबारा तुम्हारे पास से हो कर गया, तो मैंने देखा कि तुम विवाह-योग्य हो गयी हो। मैंने अपने वस्त्र का पल्ला तुम पर डाल तुम्हारा नग्न शरीर ढक दिया। मैंने शपथ खा कर तुम से समझौता किया और तुम मेरी हो गयी। यह प्रभु की वाणी है।

9) मैंने तुम को पानी से नहलाया, तुम पर लगा हुआ रक्त धो डाला और तुम पर तेल का विलेपन किया।

10) मैंने तुम को बेलबूटेदार कपड़े और बढिया चमडे़ के जूते पहनाये। मैंने तुम को छालटी का सरबन्द और रेशमी वस्त्र प्रदान किये।

11) मैंने तुम को आभूषण पहनाये, तुम्हारे हाथों में कंगन और तुम्हारे गले में हार डाला।

12) मैंने तुम्हारी नाक में नथ लगाया, तुम्हारे कानों में बालियाँ पहनायी और तुम्हारे सिर पर शानदार मुकुट रख दिया।

13) तुम सोने और चाँदी से अलंकृत थी। तुम छालटी, रेशम और बेलबूटेदार कपड़े पहनती थी। तुम्हारा भोजन मैदे, मधु और तेल से बनता था। तुम राजरानी के सदृश अत्यन्त सुुन्दर हो गयी।

14) तुम्हारे सौन्दर्य का ख्याति संसार भर में फैल गयी, क्योंकि मैंने तुम को अपूर्व गौरव प्रदान किया था। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

15) “किन्तु तुम्हारे सौन्दर्य ने तुम को बहका दिया। तुम अपनी ख्याति को दुरुपयोग करते हुए व्यभिचार करने लगी। तुमने किसी भी बटोही को अपना सौन्दर्य बेच दिया।

60) फ़िर भी मैं उस प्रतिज्ञा को याद रखूँगा, जो मैंने तुम्हारी जवानी के दिनों तुम से की थी। मेरा और तुम्हारा विधान सदा के लिए बना रहेगा।

63) जब तुम अपना अतीत याद करोगी, तो तुम लज्जा के मारे एक भी शब्द कहने का साहस नहीं करोगी; क्योकि मैंने तुम्हारे सभी अपराध क्षमा कर दिये। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 19:3-12

3 फ़रीसी ईसा के पास आये और उनकी परीक्षा लेते हुए यह प्रश्न किया, ’’क्या किसी भी कारण से अपनी पत्नी का परित्याग करना उचित है?

4) ईसा ने उत्तर दिया, ’’क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि सृष्टिकर्ता ने प्रारंभ से ही उन्हें नर-नारी बनाया।

5) और कहा कि इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोडे़गा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे?

6) इस तरह अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर है। इसलिए जिसे ईश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।’’

7) उन्होंने ईसा से कहा, ’’तब मूसा ने पत्नी का परित्याग करते समय त्यागपत्र देने का आदेश क्यों दिया?

8) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मूसा ने तुम्हारे हृदय की कठोरता के कारण ही तुम्हें पत्नी का परित्याग करने की अनुमति दी, किन्तु प्रारम्भ से ऐसा नहीं था।

9) मैं तुम लोगों से कहता हूँ कि व्यभिचार के सिवा किसी अन्य कारण से जो अपनी पत्नी का परित्याग करता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।’’

10) शिष्यों ने ईसा से कहा, ’’यदि पति और पत्नी का सम्बन्ध ऐसा है, तो विवाह नहीं करना अच्छा ही है’’।

11) ईसा ने उन से कहा ’’सब यह बात नहीं समझते, केवल वे ही समझते हैं जिन्हें यह वरदान मिला है;

12) क्योंकि कुछ लोग माता के गर्भ से नपुंसक उत्पन्न हुए हैं, कुछ लोगों को मनुष्यों ने नपुंसक बना दिया है और कुछ लोगों ने स्वर्गराज्य के निमित्त अपने को नपुंसक बना लिया है। जो समझ सकता है, वह समझ ले।’’