August 14

पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 38:4-6,8-10

4) पदाधिकारियों ने राजा से कहा, “यिरमियाह को मार डाला जाये। वह येरूासालेम की हार की भवियवाणी करता है और इस प्रकार शहर में रहने वाले सौनिकों और सारी जनता की हिम्मत तोड़ता है। वह प्रजा का हित नहीं, बल्कि अहित चाहता है“।

5) राजा सिदकीया ने उत्तर दिया, “वह आप लोगों के वश में है। राजा आप लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता।“

6) इस पर वे यिरमियाह को ले गये और उन्होंने उस को रक्षादल के प्रांगण में स्थित राजकुमार मलकीया के कुएँ में डाल दिया। उन्होंने यिरमियाह को रस्सी से उतार दिया। कुएँ में पानी नहीं था, उस में केवल कीच था और यिरमियाह कीच में धँस गया।

8) एबेद-मेलेक ने राजमहल से निकल कर राजा से कहा,

9) “राजा! मेरे स्वामी! उन लोगों ने नबी यिरमियाह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया- उन्होंने उन को कुएँ में डाल दिया। वह वहाँ भूखे मर जायेंगे, क्योंकि नगर में रोटी नहीं बची है।“

10) इस पर राजा ने कूशी एबेद-मेलेक को यह आदेश दिया, “यहाँ के तीन आदमियों को अपने साथ ले जाओ और इस से पहले कि यिरमियाह मर जाये, उसे कुएँ में से खींच निकालो।“

📒दूसरा पाठ : इब्रानियों 12:1-4

1) जब विश्वास के साक्षी इतनी बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर विद्यमान हैं, तो हम हर प्रकार की बाधा दूर कर अपने को उलझाने वाले पाप को छोड़ कर और ईसा पर अपनी दृष्टि लगा कर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जायें, जिस में हमारा नाम लिखा गया है।

2) ईसा हमारे विश्वास के प्रवर्तक हैं और उसे पूर्णता तक पहुँचाते हैं। उन्होंने भविष्य में प्राप्त होने वाले आनन्द के लिए क्रूस पर कष्ट स्वीकार किया और उसके कलंक की कोई परवाह नहीं की। अब वह ईश्वर के सिंहासन के दाहिने विराजमान हैं।

3) कहीं ऐसा न हो कि आप लोग निरूत्साह हो कर हिम्मत हार जायें, इसलिए आप उनका स्मरण करते रहें, जिन्होंने पापियों का इतना अत्याचार सहा।

4) अब तक आप को पाप से संघर्ष करने में अपना रक्त नहीं बहाना पड़ा।

📒सुसमाचार : लूकस 12:49-53

49) “मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!

50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!

51) “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।

52) क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध।

53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।”