गुरुवार, 17 अगस्त, 2023
वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह
📒 पहला पाठ : योशुआ का ग्रन्थ 3:7-11, 13-17
7) प्रभु ने योशुआ से यह कहा, “मैं आज से इस बात का ध्यान रखूँगा कि सभी इस्राएली तुम्हारा महत्व समझें और यह जान जायें कि जिस तरह मैं मूसा के साथ रहा उसी तरह तुम्हारे साथ भी रहूँगा।
8) तुम विधान की मंजूषा ढोने वाले याजको को यह आदेश दोगे, ’जब तुम लोग यर्दन नदी के तट पर पहुँचो, तो नदी में ही खडे़ हो जाओ’।”
9) इसके बाद योशुआ ने इस्राएलियों से कहा, “यहाँ आओ और अपने प्रभु ईश्वर का आदेश सुनों।”
10) योशुआ ने कहा, “अब तुम जान जाओगे कि जीवन्त ईश्वर तुम्हारे बीच है और तुम लोगों के सामने से कनानियों को निष्चय ही भगा देगा।
11) समस्त पृथ्वी के प्रभु के विधान की मंजूषा तुम लोगों से पहले यर्दन पार करेगी।
13) ज्यों ही समस्त पृथ्वी के प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक यर्दन नदी के पानी में पैर रखेंगे त्यों ही ऊपर से बहने वाला पानी थम जायेगा और ठोस पुंज जैसा हो जायेगा।”
14) जब इस्राएली अपने तम्बू उखाड़ कर यर्दन पार करने निकले तो विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक उनके आगे-आगे चलें।
15) ज्यों ही मंजूषा ढोने वाले याजकों ने यर्दन के पास जा कर पानी में पैर रखा- कटने के समय यर्दन का पानी उमड़ कर तट पर फैल जाता है –
16) त्यों ही ऊपर से बहने वाला पानी थम गया और सारतान के निकटवर्ती आदाम नगर तक ठोस पुंज- जैसा बन गया। अराबा के समुद्र अर्थात लवण समुद्र की ओर उतरने वाला पानी बह निकला और इस प्रकार इस्राएली येरीख़ो के सामने पार उतरे।
17) जब इस्राएली सूखे पाँव उस पार जा रहे थे तो प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक यर्दन के बीच के सूखे तल पर तब तक खडे़ रहे, जब तक सभी लोग यर्दन के उस पार नहीं पहुँचे।
📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती 18:21-19:1
21) तब पेत्रुस ने पास आ कर ईसा से कहा, “प्रभु! यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करता जाये, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? सात बार तक?”
22) ईसा ने उत्तर दिया, “मैं तुम से नहीं कहता ’सात बार तक’, बल्कि सत्तर गुना सात बार तक।
23) “यही कारण है कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था।
24) जब वह लेखा लेने लगा, तो उसका लाखों रुपये का एक कर्ज़दार उसके सामने पेश किया गया।
25) अदा करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्नी, उसके बच्चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाये और ऋण अदा कर लिया जाये।
26) इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर कर यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’मुझे समय दीजिए, और मैं आपको सब चुका दूँगा।
27) उस सेवक के स्वामी को तरस हो आया और उसने उसे जाने दिया और उसका कर्ज़ माफ़ कर दिया।
28) जब वह सेवक बाहर निकला, तो वह अपने एक सह- सेवक से मिला, जो उसका लगभग एक सौ दीनार का कर्ज़दार था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला घोंट कर कहा, ’अपना कर्ज़ चुका दो’।
29) सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’मुझे समय दीजिए और मैं आपको चुका दूँगा’।
30) परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिये बन्दीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज़ न चुका दे!
31) यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दुःखी हो गये और उन्होंने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं।
32) तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ’दुष्ट सेवक! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कजऱ् माफ़ कर दिया था,
33) तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’
34) और स्वामी ने क्रुद्ध होकर उसे तब तक के लिए जल्लादों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे।
35) यदि तुम में हर एक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।”
19:1) अपना यह उपदेश समाप्त कर ईसा गलीलिया से चले गये और यर्दन के पार यहूदिया प्रदेश पहुँचे।