August 18

पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 36:23-28

23) मैं अपने महान् नाम की पवत्रिता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश में कलंक लग गया है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवत्रि नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

24) ’’मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से एकत्र कर तुम्हारे अपने देश वापस ले जाऊँगा।

25) मैं तुम लोगों पर पवत्रि जल छिडकूँगा और तुम पवत्रि हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवत्रिता से और तुम्हारी सब देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा।

26) मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।

27) मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोग।

28) तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 22:1-14

1) ईसा उन्हें फिर दृष्टान्त सुनाने लगे। उन्होंने कहा,

2) ’’स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया।

3) उसने आमन्त्रित लोगों को बुला लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन वे आना नहीं चाहते थे।

4) राजा ने फिर दूसरे सेवकों को यह कहते हुए भेजा, ’अतिथियों से कह दो- देखिए! मैंने अपने भोज की तैयारी कर ली है। मेरे बैल और मोटे-मोटे जानवर मारे जा चुके हैं। सब कुछ तैयार है; विवाह-भोज में पधारिये।’

5) अतिथियों ने इस की परवाहा नहीं की। कोई अपने खेत की और चला गया, तो कोई अपना व्यापार देखने।

6) दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड़ कर उनका अपमान किया और उन्हें मार डाला।

7) राजा को बहुत क्रोध आया। उसने अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का सर्वनाश किया और उनका नगर जला दिया।

8) ’’तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ’विवाह-भोज की तैयारी तो हो चुकी है, किन्तु अतिथि इसके योग्य नहीं ठहरे।

9) इसलिए चैराहों पर जाओ और जितने भी लोग मिल जायें, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ।’

10) सेवक सड़कों पर गये और भले-बुरे जो भी मिले, सब को बटोर कर ले आये और विवाह-मण्डप अतिथियों से भर गया।

11) ’’राजा अतिथियों को देखने आया, तो वहाँ उसकी दृष्टि एक ऐसे मनुष्य पर पड़ी, जो विवाहोत्सव के वस्त्र नहीं पहने था।

12) उसने उस से कहा, ’भई विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?’ वह मनुष्य चुप रहा।

13) तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ’इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।’

14) क्योंकि बुलाये हुए तो बहुत हैं, लेकिन चुने हुए थोडे़ हैं।’’