August 19
पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 37:1-14
1) प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा और प्रभु के आत्मा ने मुझे ले जा कर एक घाटी में उतार दिया, जो हड्डियों से भरी हुई थी।
2) उसने मुझे उनके बीच चारों ओर घुमाया। वे हाड्डियाँ बड़ी संख्या में घाटी के धरातल पर पड़ी हुई थीं और एकदम सूख गयी थीं।
3) उसने मुझ से कहा, “मानवपुत्र! क्या इन हाड्डियों में फिर जीवन आ सकता है?” मैंने उत्तर दिया, “प्रभु-ईश्वर! तू ही जानता है”।
4) इस पर उसने मुझ से कहा, “इन हाड्डियों से भवियवाणी करो। इन से यह कहो, ’सूखी’ हड्डियो! प्रभु की वाणी सुनो।
5) प्रभु-ईश्वर इन हड्डियों से यह कहता है: मैं तुम में प्राण डालूँगा और तुम जीवित हो जाओगी।
6) मैं तुम पर स्नायुएँ लगाऊँगा तुम में मांस भरूँगा, तुम पर चमड़ा चढाऊँगा। तुम में प्राण डालूँगा, तुम जीवित हो जाओगी और तुम जानोगी कि मैं प्रभु हूँ।”
7) मैं उसके आदेश के अनुसार भवियवाणी करने लगा। मैं भवियवाणी कर ही रहा था कि एक खडखडाती आवाज सुनाई पडी और वे हाड्डिया एक दूसरी से जुडने लगीं।
8) मैं देख रहा था कि उन पर स्नायुएँ लगीं; उन में मांस भर गया, उन पर चमड़ा चढ गया, किंतु उन में प्राण नहीं थे।
9) उसने मुझ से कहा, “मानवपुत्र! प्राणवायु को सम्बोधिक कर भवियवाणी करो। यह कह कर भवियवाणी करो: ’प्रभु-ईश्वर यह कहता है। प्राणवायु! चारों दिशाओं में आओ और उन मृतकों में प्राण फूँक दो, जिससे उन में जीवन आ जाये।”
10) मैंने उसके आदेशानुसार भवियवाणी की और उन में प्राण आये। वे पुनर्जीवित हो कर अपने पैरों पर खड़ी हो गयी- वह एक विशाल बहुसंख्यक सेना थी।
11) तब उसने मुझ से कहा, “मानवपुत्र! ये हड्डियाँ समस्त इस्राएली हैं। वे कहते रहते हैं- ’हमारी हड्डियाँ सूख गयी हैं। हमारी आशा टूट गय है। हमारा सर्वनाश हो गया है।
12) तुम उन से कहोगे, ’प्रभु यह कहता है: मैं तुम्हारी कब्रों को खोल दूँगा। मेरी प्रजा! में तुम लोगों को कब्रों से निकाल का इस्राएल की धरती पर वापस ले जाऊँगा।
13) मेरी प्रजा! जब मैं तुम्हारी कब्रों को खोल कर तुम लोगों को उन में से निकालूँगा, तो तुम लोग जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
14) मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया’।”
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 22:34-40
34) जब फरीसियों ने यह सुना कि ईसा ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया था, तो वे इकट्ठे हो गये।
35) और उन में से एक शास्त्री ने ईसा की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा,
36) गुरुवर! संहिता में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?’’
37) ईसा ने उस से कहा, ’’अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो।
38) यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है।
39) दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।
40) इन्हीं दो आज्ञायों पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।’’