शनिवार, 19 अगस्त, 2023
वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह
📒 पहला पाठ : योशुआ का ग्रन्थ 24:14-29
14) प्रभु पर श्रद्धा रखो और ईमारदारी तथा सच्चाई से उसकी उपासना करो। उन देवताओं का बहिष्कार करो, जिनकी उपासना तुम्हारे पूर्वज फरात नदी के उस पार और मिस्र में किया करते थे। तुम प्रभु की उपासना करो।
15) यदि तुम ईश्वर की उपासना नहीं करना चाहते, तो आज ही यह कर लो कि तुम किसकी उपासना करना चाहते हो- उन देवताओं की, जिनकी उपासना तुम्हारे पूर्वज नदी के उस पार करते थे अथवा अमोरियों के देवताओं की, जिनके देश में तुम रहते हो। मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की उपासना करना चाहते हैं।
16) लोगों ने उत्तर दिया, ’’प्रभु के छोड़ कर अन्य देवताओं की उपासना करने का विचार हम से कोसों दूर है।
17) हमारे प्रभु-ईश्वर ने हमें और हमारे पूर्वजों को दासता के घर से, मिस्र देश से निकाल लिया है। उसी ने हमारे सामने महान् चमत्कार दिखाये हैं। हम बहुत लम्बा रास्ता तय कर चुके हैं, बहुत से राष्ट्रों से हो कर यहाँ तक आये हैं और सर्वत्र उसी ने हमारी रक्षा की है।
18) हम भी प्रभु की उपासना करना चाहते हैं, क्योंकि वही हमारा ईश्वर है।
19) तब योशुआ ने लोगों से कहा, ’’तुम प्रभु की उपासना नहीं कर सकोगे, क्योंकि वह पवित्र ईश्वर है, असहनशील ईश्वर है। वह तुम्हारे अपराध और पाप नहीं क्षमा करेगा।
20) यदि प्रभु को त्याग कर अन्य देवताओं की उपासना करोगे, तो यद्यपि वह तुम्हारी भलाई करता रहा, फिर भी वह तुम्हारी बुराई करेगा और तुम्हें नष्ट कर देगा।’’
21) लोगों ने योशुआ से कहा, ’’नहीं! हम प्रभु की उपासना करेंगे।’’
22) तब योशुआ ने लोगों से कहा, ’’तुम लोग अपने विरुद्ध साक्षी हो कि तुमने प्रभु को चुन लिया ओर उसी की उपासना करोगे’’। उन्होंने उत्तर दिया, ’’हम साक्षी हैं।’’
23) इस पर योशुआ ने कहा, ’’तब तो अपने पास के पराये देवताओं का बहिष्कार करो और अपना मन ईश्वर में, इस्राएल के प्रभु में लगाओ’’।
24) लोगों ने योशुआ को यह उत्तर दिया, ’’हम प्रभु अपने ईश्वर की उपासना करेंगे और उसी की बात मानेंगे’’।
25) योशुआ ने उसी दिन लोगों के साथ समझौता कर लिया। उसने सिखेम में उनके लिए संविधान और अध्यादेश बनाया।
26) इसके बाद उसने उन बातों को प्रभु की संहिता के ग्रन्थ में लिख दिया। उसने बलूत के नीचे, प्रभु के मंदिर में एक बड़ा पत्थर खड़ा कर दिया
27) और सब लोगों से कहा, यह पत्थर हमारे विरुद्ध साक्ष्य देगा, क्योंकि इसने उन सब बातों को सुना, जिन्हें प्रभु ने हमें बताया। इसलिए यह तुम्हारे विरुद्व साक्ष्य देगा, जिससे तुम अपने ईश्वर को अस्वीकार नहीं करो।’’
28) इसके बाद योशुआ ने लोगों को अपनी अपनी भूमि में भेज दिया।
29) इन घटनाओं के बाद प्रभु के सेवक, नून के पुत्र योशुआ का, एक सौ दस वर्ष की उम्र में देहान्त हुआ।
📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती 19:13-15
13) उस समय लोग ईसा के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वे उन पर हाथ रख कर प्रार्थना करें। शिष्य लोगों को डाँटते थे,
14) परन्तु ईसा ने कहा, ’’बच्चों को आने दो और उन्हें मेरे पास आने से मत रोको, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन-जैसे लोगों का है’’
। 15) और वह बच्चों पर हाथ रख कर वहाँ से चले गये।