August 31
पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 3:1-9
1) भाइयो! मैं उस समय आप लोगों से उस तरह बातें नहीं कर सका, जिस तरह आध्यात्मिक व्यक्तियों से की जाती हैं। मुझे आप लोगों से उस तरह बातें करनी पड़ी, जिस तरह प्राकृत मनुष्यों से, मसीह में मेरे निरे बच्चों से, की जाती हैं।
2) मैंने आप को दूध पिलाया। मैंने आप को ठोस भोजन इसलिए नहीं दिया कि आप उसे नहीं पचा सकते थे।
3) आप इस समय भी उसे पचा नहीं सकते, क्योंकि आप अब तक प्राकृत हैं। आप लोगों में ईर्ष्या और झगड़ा होता है। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि आप प्राकृत हैं और निरे मनुष्यों-जैसा आचरण करते हैं?
4) जब कोई कहता है, “मैं पौलुस का हूँ” और कोई कहता है, “मैं अपोल्लोस का हूँ”, तो क्या यह निरे मनुष्यों-जैसा आचरण नहीं है?
5) अपोल्लोस क्या है? पौलुस क्या है? हम तो धर्मसेवक मात्र हैं, जिनके माध्यम से आप विश्वासी बने। हम में प्रत्येक ने वही कार्य किया, जिसे प्रभु ने उस को सौंपा।
6) मैंने पौधा रोपा, अपोल्लोस ने उसे सींचा, किन्तु ईश्वर ने उसे बड़ा किया।
7) न तो रोपने वाले का महत्व है और न सींचने वाले का, बल्कि वृद्धि करने वाले अर्थात् ईश्वर का ही महत्व है।
8) रोपने वाला और सींचने वाला एक ही काम करते हैं और प्रत्येक अपने-अपने परिश्रम के अनुरूप अपनी मज़दूरी पायेगा।
9) हम ईश्वर के सहयोगी हैं और आप लोग हैं-ईश्वर की खेती, ईश्वर का भवन।
सुसमाचार : लूकस 4:38-44
38) वे सभागृह से निकल कर सिमोन के घर गये। सिमोन की सास तेज़ बुखार में पड़ी हुई थी और लोगों ने उसके लिए उन से प्रार्थना की।
39) ईसा ने उसके पास जा कर बुख़ार को डाँटा और बुख़ार जाता रहा। वह उसी क्षण उठ कर उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी।
40) सूरज डूबने के बाद सब लोग नाना प्रकार की बीमारियों से पीडि़त अपने यहाँ के रोगियों को ईसा के पास ले आये। ईसा एक-एक पर हाथ रख कर उन्हें चंगा करते थे।
41) अपदूत बहुतों में से यह चिल्लाते हुये निकलते थे, “आप ईश्वर के पुत्र हैं”। परन्तु वह उन को डाँटते और बोलने से रोकते थे, क्योंकि अपदूत जानते थे कि वह मसीह हैं।
42) ईसा प्रातःकाल घर से निकल कर किसी एकान्त स्थान में चले गये। लोग उन को खोजते-खोजते उनके पास आये और अनुरोध करते रहे कि वह उन को छोड़ कर नहीं जायें।
43) किन्तु उन्होंने उत्तर दिया, “मुझे दूसरे नगरों को भी ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना है-मैं इसीलिए भेजा गया हूँ”
44) और वे यहूदिया के सभागृहों में उपदेश देते रहे।