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पठन योजना में आज पढ़ें :(यिरमियाह का ग्रन्थ 3 ),( एज़ेकिएल का ग्रन्थ 29-30), (सूक्ति-ग्रन्थ 14: 13-16)

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यिरमियाह 3

1 “यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को त्याग दे और वह जा कर किसी दूसरे से विवाह करे, तो क्या वह उसे फिर स्वीकार करेगा? क्या वह पूरी तरह अपवित्र नहीं हो गयी है? तुमने बहुत-से प्रेमियों के साथ व्यभिचार किया। क्या तुम अब मेरे पास लौटना चाहती हो?“ यह प्रभु की वाणी है।

2 “पहाड़ी शिखरों की ओर आँख उठा कर देखो। क्या वहाँ कोई ऐसी जगह है, जहाँ तुमने व्यभिचार नहीं किया? तुम मरुभूमि में अरबी की तरह रास्ते के किनारे अपने प्रेमियों की प्रतीक्षा करती रही। तुमने अपनी वेश्यावृत्ति और दुष्टता से देश को दूषित किया।

3 जब तुम्हारे यहाँ पानी नहीं बरसा और वसन्त-ऋतु में होने वाली वर्षा नहीं हुई, तो तुम वेश्या की तरह आँखें मटका रही हो और तुम्हें लाज नहीं लगती।

4 तब भी तुम मुझ से कहती होः ’तू मेरा पिता है। तू बचपन से मेरा मित्र रहा।

5 क्या वह सदा के लिए मुझ पर अप्रसन्न रहेगा, क्या उसका क्रोध कभी शान्त नहीं होगा?’ तुम यह कहती हो और पाप-पर-पाप करती जाती हो।“

6 राजा योशीया के शासनकाल में प्रभु ने मुझ से कहाः “क्या तुमने यह देखा कि इस्राएल की विश्वासघातिनी प्रजा ने क्या किया है? उसने ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ कर हर घने वृक्ष के नीचे व्यभिचार किया।

7 मेरा विचार था कि यह सब करने के बाद वह मेरे पास लौटेगी, किन्तु वह नहीं लौटी। उसकी बहन, कपटपूर्ण यूदा ने यह देखा।

8 मैंने भी देखा। मैंने उसके व्यभिचार के कारण विश्वासघातिनी इस्राएल को त्यागपत्र दे कर छोड़ दिया। किन्तु उसकी बहन, कपट पूर्ण यूदा नहीं डरी। वह भी व्यभिचार करने लगी।

9 उसने अपनी चपलता और दुराचरण से पृथ्वी को दूषित किया। वह पत्थर और लकड़ी की पूजा द्वारा व्यभिचार करती है।

10 इन सब बातों के बावजूद उसकी बहन, कपटपूर्ण यूदा सच्चे हृदय से नहीं, बल्कि दिखावे के लिए मेरे पास लौटी।“ यह प्रभु की वाणी है।

11 प्रभु ने मुझ से कहाः “कपटपूर्ण यूदा की अपेक्षा विश्वासघातिनी इस्राएल कम दोषी है।

12 तुम उत्तर की ओर जा कर यह सन्देश सुनाओः ’विश्वासघातिनी इस्राएल! मेरे पास लौटो’। -यह प्रभु की वाणी है- ’मैं तुम पर और अप्रसन्न नहीं होऊँगा, क्योंकि मैं दयालु हूँ’। -यह प्रभु की वाणी है- ’मैं सदा के लिए तुम पर क्रोध नहीं करूँगा।

13 तुम अपना दोष स्वीकार करो। तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से विद्रोह किया। तुमने अपने को हर घने वृक्ष के नीचे पराये देवताओं के प्रति अर्पित किया। तुमने मेरी वाणी पर ध्यान नहीं दिया।“ – यह प्रभु की वाणी है।

14 प्रभु यह कहता हैः “विद्रोही पुत्रो! मेरे पास लौट आओ। मैं ही तुम्हारा स्वामी हूँ। मैं तुम लोगों को, सब नगरों और राष्ट्रों से निकाल कर, सियोन में वापस ले आऊँगा।

15 में तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहों को प्रदान करूँगा, जो विवेक और बुद्धिमानी से तुम्हें चरायेंगे।“

16 प्रभु यह कहता हैः “जब देश में तुम लोगों की संख्या बहुत बढ़ेगी और तुम्हारी बड़ी उन्नति होगी, तब कोई प्रभु के विधान की मंजूषा की चरचा नहीं करेगा। कोई उसे याद नहीं करेगा। किसी को उसका अभाव नहीं खटकेगा और उसके स्थान पर कोई दूसरी मंजूषा नहीं बनायी जायेगी।

17 उस समय येरुसालेम ’प्रभु का सिंहासन’ कहलायेगा। सभी राष्ट्र प्रभु के नाम पर येरुसालेम में एकत्र हो जायेंगे। वे फिर कभी अपने दुष्ट और हठीले हृदय की वासनाओं के अनुसार नहीं चलेंगे।

18 उस समय यूदा के लोग इस्राएल के लोगों से मेल करेंगे और वे एक साथ उत्तर के देश से आ कर उस देश में प्रवेश करेंगे, जिसे मैंने विरासत के रूप में उनके पूर्वजों को दिया है।

19 “मैं सोचता था, मैं कितना चाहता हूँ कि तुम लोगों के साथ अपने पुत्रों-जैसा व्यवहार करूँ और तुम को एक ऐसा सुखद देश प्रदान करूँ, जो किसी भी अन्य देश से सुन्दर है। मैं सोचता था, तुम मुझे पिता कह कर पुकारोगे और तुम फिर मेरा परित्याग नहीं करोगे।

20 किन्तु जिस प्रकार पत्नी अपने पति के साथ विश्वासघात करती है, उसी प्रकार तुम, इस्राएल ने मेरे साथ विश्वासघात किया।“ यह प्रभु की वाणी है।

21 इस्राएली उजाड़ पहाड़ों पर क्रन्दन करते और दुहाई देते हैं। वे टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर भटक गये हैं। उन्होंने अपने प्रभु-ईश्वर को भुला दिया है।

22 “विश्वासघाती पुत्रो! मेरे पास लौटो मैं तुम्हारे विश्वासघात का घाव भर दूँगा।“ “देख, हम तेरे पास आ रहे हैं; क्योंकि तू ही हमारा प्रभु-ईश्वर है।

23 पहाड़ियों और पर्वतों पर की पूजा कोलाहलपूर्ण धोखा मात्र है। निश्चय ही हमारे प्रभु-ईश्वर में इस्राएल का कल्याण है।

24 हमारी युवावस्था के समय घृणित देवता हमारे पूर्वजों के परिश्रम के फल को, हमारी भेड़-बकरियों, गाय-बैल, हमारे पुत्र-पुत्रियों को खाते आ रहे हैं।

25 हम लज्जा के मारे ज़मीन में गड़ गये हैं, हमारा कलंक हमें ढ़क रहा है। हमने और हमारे पूर्वजों ने अपने प्रभु-ईश्वर के विरुद्ध पाप किया है। हमने अपनी युवावस्था से आज तक अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया।”

एज़ेकिएल 29

1 दसवें वर्ष के दसवें महीने के बारहवें दिन मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी:

2 “मानवपुत्र! मिस्र के राजा फ़िराउन की ओर मुँह कर उसके और समस्त मिस्र के विषय में यह भवियवाणी करो।

3 कहो, ’प्रभु-ईश्वर यह कहता है: मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ, मिस्र के राजा फ़िराउन! नील की जलधाराओं के नीचे रहने वाला पंखदार सर्प, जो यह कहता है ’मेरी नील नदी मेरी अपनी है; उसकी रचना मैंने की है।“

4 मैं तुम्हारे जबड़ों में अँकुसी डालूँगा और तुम्हारे छिलके पर तुम्हारी जलधाराओं की मछलियों को चिपका दूँगा; मैं तुम्हारी जलधाराओं से तुम को तुम्हारी चमड़ी से चिपकी तुम्हारी जलधाराओं की सभी मछलियों के साथ बाहर खींच लूँगा।

5 मैं तुम्हें अपनी जलधाराओं की सभी के साथ उजाड़खण्ड में फेंक दूँगा। तुम खुले मैदान में गिर पड़ोगे, और तुम को उठा कर कोई तुम्हारा दफ़न नहीं करेगा। मैं तुम को धरती के पशुओं और आकाश के पक्षियों का आहार बना दूँगा।

6 “तब सभी मिस्रवासी यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ। तुम इस्राएल के घराने के लिए सरकण्डे की छड़ी रहे होः

7 जब उन लोगों ने तुम को पकड़ा तो तुम उनके हाथ से टूट गये और उनके कन्धे तोड़ दिये; और जब वे तुम पर झुके, तो तुम टुकडे़-टुकड़े हो गये और तुमने उनकी पीठ तोड़ दी।

8 इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं तुम पर तलवार भेजूँगा और तुम्हारे यहाँ से मनुष्य और पशु को निर्मूल कर दूँगा।

9 मिस्र देश खँडहर और उजाड़ हो जायेगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ। “क्योंकि तुमने यह कहा था, “नील नदी मेरी अपनी है; मैंने उसकी रचना की थी“

10 इसलिए मैं तुम्हारे और तुम्हारी जलधाराओं के विरुद्ध हूँ। मैं मिगदोल से ले कर सवेने तक, कूश की सीमा तक, मिस्र देश को खँडहर और उजाड़ बना दूँगा।

11 वहाँ न तो किसी मनुष्य का चरण पड़ेगा और न किसी पशु की ही। वह चालीस वर्षों तक निर्जन रहेगा।

12 मैं मिस्र देश को उजाड़ देशों से भी उजाड़ बना दूँगा और उसके नगर उजाड़े गये नगरों से भी चालीस वर्षों तक उजाड़ बने रहेंगे। मैं मिस्रियों को राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा।

13 “प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः चालीस वर्ष बीतने पर मैं मिस्रियों को उन राष्ट्रों में से, जिन में वे बिखरे रहेंगे, एकत्रित करूँगा।

14 मैं मिस्रियों का भाग्य पलट दूँगा और उन्हें अपने मूल देश-पत्रोस देश वापस ले जाऊँगा, जहाँ वे एक दीन राज्य बन जायेंगे।

15 वह राज्यों में सब से दीन राज्य होगा और राष्ट्रों के बीच फिर कभी ऊपर नहीं उठेगा। मैं उसे इतना तुच्छ बना दूँगा कि वह फिर कभी राष्ट्रों पर शासन नहीं कर पायेगा।

16 वह इस्राएल के घराने के लिए फिर कभी विश्वास योग्य नहीं बनेगा, जिसे सहायता के लिए उसकी ओर देखने पर अपना अपराध याद हो आयेगा। तब वे लोग यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।“

17 सत्ताईसवें वर्ष के पहले महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी:

18 “मानवपुत्र! बाबुल के राजा नबूकदनेज़र ने अपनी सेना से तीरुस के विरुद्ध बहुत परिश्रम कराया। उस में से हर एक सिर के बाल उड़ गये और हर एक का कन्धा छिल गयाः किन्तु तीरुस के विरुद्ध किये गये परिश्रम का कोई मूल्य न तो उसे और न उसकी सेना को तीरुस से प्राप्त हुआ।

19 इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है: मैं बाबूल के राजा नबूकदनेजर को मिस्र देश दे दूँगा। वह उसकी सम्पत्ति छीन कर ले जायेगा, उसे लूट लेगा और उजाड़ देगा और यही उसकी सेना का वेतन होगा।

20 मैंने उस को अपने परिश्रम के पुरस्कार के रूप में मिस्र देश दे दिया है, क्योंकि उन लोगों ने मेरे लिए श्रम किया था। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

21 “उस दिन इस्राएल के घराने को मैं नयी शक्ति प्रदान करूँगा और उनके सामने तुम्हें बोलने का समाथ्र्य दूँगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

एज़ेकिएल 30

1 प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी:

2 “मानवपुत्र! भवियवाणी करते हुए कहो, ’प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः विलाप करो, “हाय, यह कैसा दिन आया!“

3 क्योंकि वह दिन निकट है, प्रभु का दिन समीप है। वह दिन बादलों का होगा, वह घड़ी राष्ट्रों की होगी।

4 मिस्र पर तलवार गिरेगी। और जब मिस्र में मारे हुए लोग धराशायी होंगे, उसकी सम्पत्ति छीन ली जायेगी और उसकी नींव तोड़ दी जायेगी, तब कूश भय से काँपेगा।

5 कूश, पूट और लूद, समस्त अरब, लीबिया और सन्धि देशों के लोग उनके साथ तलवार के घाट उतारे जायेंगे।

6 “प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मिस्र की सहायता करने वालों का पतन होगा और उसकी अभिमानी शक्ति का अपकर्ष हो जायेगा। मिगदोल से सवेने तक लोग तलवार के घाट उतारे जायेंगे – यह प्रभु-ईश्वर कहता है।

7 “वह उजाड़े गये देशों से भी उजाड़ होगा और उसके नगर उजाड़ नगरों से भी अधिक उजाड़ होंगे।

8 तब वे लोग यह समझ जायेंगे कि मैं ही वह प्रभु हूँ, जब मैं मिस्र में आग लगाऊँगा और उसके सभी सहायक नष्ट हो जायेंगे।

9 “उस दिन असावधान क्रूश को आतंकित करने मेरे यहाँ से नावों पर दूत जायेंगे और मिस्र के न्याय के दिन उन पर आशंका छा जायेगी; क्योंकि वह दिन आ ही रहा है।

10 “प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं बाबुल के राजा नबूकदनेज़र के हाथों मिस्र का वैभव नष्ट कर दूँगा।

11 वह और उसके साथ उसकी प्रजा, जो राष्ट्रों में सब से भयंकर हैं, देश का विनाश करने के लिए लाये जायेंगे। वे मिस्र पर अपनी तलवारें खीचेंगे और मृतकों से देश पाट देंगे।

12 मैं नील की नहरों को सूखी भूमि बना दूँगा और देश को दुष्टों के हाथ बेच दूँगा। मैं विदेशियों द्वारा देश और उस में जो कुछ है, उसे उजाड़ बना दूँगा। यह मैं, प्रभु, ने कहा है।

13 “ ’प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं देवमूर्तियों को नष्ट कर दूँगा और मेमफिस की प्रतिमाओं के टुकडे़-टुकड़े कर दूँगा। मिस्र में कोई शासक नहीं रह जायेगा। मैं मिस्र देश में आतंक भर दूँगा।

14 मैं पत्रोस को उजाड़ बना डालूँगा, सोअन में आग लागाऊँगा और नो को दण्ड दूँगा।

15 मैं मिस्र के गढ़ सीन पर अपना कोप बरसाऊँगा और नो के जनसमूह का विनाश करूँगा

16 मैं मिस्र में आग लगाऊँगा और सीन पीड़ा से छटपटायेगा। नो में दरार कर दी जायेगी और उस पर दिन दहाड़े आक्रमण किया जायेगा।

17 ओन और पीबेसेत के युवक तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे तथा उन्हें बन्दी बना कर ले जाया जायेगा।

18 जब में मिस्र का राजदण्ड तोड़ दूँगा, तो तहपनहेस में दिन में अँधेरा छा जायेगा। उसकी अभिमानी शक्ति समाप्त हो जायेगी। उस पर दुर्दिन छा जायेगा और उसकी पुत्रियों को बन्दी बना कर ले जाया जायेगा।

19 इस प्रकार मैं मिस्र को दण्ड दूँगा और वे लोग यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।“

20 ग्यारहवें वर्ष के पहले महीने के सातवें दिन मुझे प्रभु की वाणी यह कहते सुनाई पड़ीः

21 “मानवपुत्र! मैंने मिस्र के राजा फ़िराउन की भुजा तोड़ दी है और चंगा करने के लिए उस पर कोई मरहम-पट्टी नहीं बँधी गयी है, जिससे वह तलवार चलाने में समर्थ हो जाये।

22 इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है, ’मैं मिस्र के राजा फिराउन के विरुद्ध हो गया हूँ और उसकी भुजाएँ तोड़ डालूँगा- उसकी सामर्थ और टूटी, दोनों भुजाओं को। मैं उसके हाथ से तलवार गिर जाने दूँगा।

23 मैं मिस्र के निवासियों को राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा।

24 मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को शक्तिशाली बनाऊँगा और अपनी तलवार उसके हाथ कर दूँगा; किन्तु मैं फ़िराउन की भुजाएँ तोड़ डालूँगा और वह उसके सामने गंभीर रूप से घायल हो कर कराहेगा।

25 मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को शक्तिशाली बनाऊँगा, किन्तु फ़िराउन की भुजाएँ टूट कर गिर जायेंगी। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब मैं बाबुल के राजा के हाथ में अपनी तलवार रखूँगा, वह उस से मिस्र देश पर वार करेगा।

26 और मैं मिस्र के निवासियों को राष्ट्रों में बिखेर दूँगा तथा देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।“

सूक्ति-ग्रन्थ 14: 13-16

13 हँसते हुए मनुष्य का हृदय उदास हो सकता है, और आनन्द का परिवर्तन दुःख में संभव है।

14 पथभ्रष्ट अपने आचरण का फल भोगेगा और धर्मी को अपने कर्मों का फल मिलेगा।

15 मूर्ख हर किसी की बात पर विश्वास करता, किन्तु समझदार सोच-विचार कर आगे बढ़ता है।

16 बुद्धिमान् बुराई से डरता और उस से दूर रहता है। मूर्ख लापरवाह है और अपने को सुरक्षित मानता है।