पहला पाठ मलआकी का ग्रन्थ 1:14b-2, 2b, 8-10

14) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है: मैं महान् राजा हूँ। राष्ट्रों में लोग मेरे नाम से डरते हैं।

1) याजको! मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ

2) यदि तुम नहीं सुनोगे, यदि तुम मेरे नाम का आदर करने का ध्यान नहीं रखोगे, तो – विश्वमण्डल का प्रभु यह कहाता है – मैं तुम्हें और तुम्हारी धन-सम्पत्ति को अभिशाप दूँगा।

8) तुम लोग भटक गये हो और अपनी शिक्षा द्वारा तुमने बहुत-से लोगों को विचलित कर दिया। विश्वमण्डल के प्रभु कहता है कि तुम लोगों ने लेवी का विधान भंग किया है।

9) तुमने मेरा मार्ग छोड़ दिया और अपनी शिक्षा में भेदभाव रखा है, इसलिए मैंने सारी जनता की दृष्टि में तुम्हें घृणित और तुच्छ बना दिया है।“

10) क्या हम सबों का एक ही पिता नहीं? क्या एक ही ईश्वर ने हमारी सृष्टि नहीं की? तो, अपने पूर्वजों का विधान अपवत्रि करते हुए हम एक दूसरे के साथ विश्वासघात क्यों करते हैं?

दूसरा पाठ : थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 2:7b-9,13

7) अपने बच्चों का लालन-पालन करने वाली माता की तरह हमने आप लोगों के साथ कोमल व्यवहार किया।

8) आपके प्रति हमारी ममता तथा हमारा प्रेम यहाँ तक बढ़ गया था कि हम आप को सुसमाचार के साथ अपना जीवन भी अर्पित करना चाहते थे।

9) भाइयो! आप को हमारा कठोर परिश्रम याद होगा। आपके बीच सुसमाचार का प्रचार करते समय हम दिन-रात काम करते रहे, जिससे किसी पर भार न डालें।

13) हम इसलिए निरन्तर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि जब आपने इस से ईश्वर का सन्देश सुना और ग्रहण किया, तो आपने उसे मनुष्यों का वचन नहीं; बल्कि -जैसा कि वह वास्तव में है- ईश्वर का वचन समझकर स्वीकार किया और यह वचन अब आप विश्वासियों में क्रियाशील है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती 23:1-12

1) उस समय ईसा ने जनसमूह तथा अपने शिष्यों से कहा,

2) ’’शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,

3) इसलिए वे तुम लोगों से जो कुछ कहें, वह करते और मानते रहो; परंतु उनके कर्मों का अनुसरण न करो,

4) क्योंकि वे कहते तो हैं, पर करते नहीं। वे बहुत-से भारी बोझ बाँध कर लोगों के कन्धों पर लाद देते हैं, परंतु स्वंय उँगली से भी उन्हें उठाना नहीं चाहते।

5) वे हर काम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए करते हैं। वे अपने तावीज चैडे़ और अपने कपड़ों के झब्बे लम्बे कर देते हैं।

6) भोजों में प्रमुख स्थानों पर और सभागृहों में प्रथम आसनों पर विराजमान होना,

7) बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना और जनता द्वारा गुरुवर कहलाना- यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।

8) ’’तुम लोग ’गुरुवर’ कहलाना स्वीकार न करो, क्योंकि एक ही गुरू है और तुम सब-के-सब भाई हो।

9) पृथ्वी पर किसी को अपना ’पिता’ न कहो, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।

10 ’आचार्य’ कहलाना भी स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह।

11) जो तुम लोगों में से सब से बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने।

12) जो अपने को बडा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा। और जो अपने को छोटा मानता है, वह बडा बनाया जायेगा।