पहला पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 12:5-16ab
5) उसी प्रकार हम अनेक होते हुए भी मसीह में एक ही शरीर और एक दूसरे के अंग होते हैं।
6) हम को प्राप्त अनुग्रह के अनुसार हमारे वरदान भी भिन्न-भिन्न होते हैं। हमें भविष्यवाणी का वरदान मिला, तो विश्वास के अनुरूप उसका उपयोग करें;
7) सेवा-कार्य का वरदान मिला, तो सेवा-कार्य में लगे रहें। शिक्षक शिक्षा देने में और
8) उपदेशक उपदेश देने में लगे रहें। दान देने वाला उदार हो, अध्यक्ष कर्मठ हो और परोपकारक प्रसन्नचित हो।
9) आप लोगों का प्रेम निष्कपट हो। आप बुराई से घृणा तथा भलाई से प्र्रेम करें।
10) आप सच्चे भाइयों की तरह एक दूसरे को सारे हृदय से प्यार करें। हर एक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ माने।
11) आप लोग अथक परिश्रम तथा आध्यात्मिक उत्साह से प्रभु की सेवा करें।
12) आशा आप को आनन्दित बनाये रखे। आप संकट में धैर्य रखें तथा प्रार्थना में लगे रहें,
13) सन्तों की आवश्यकताओं के लिए चन्दा दिया करें और अतिथियों की सेवा करें।
14) अपने अत्याचारियों के लिए आशीर्वाद माँगें- हाँ, आशीर्वाद, न कि अभिशाप!
15) आनन्द मनाने वालों के साथ आनन्द मनायें, रोने वालों के साथ रोयें।
16) आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाये रखें। घमण्डी न बनें, बल्कि दीन-दुःखियों से मिलते-जुलते रहें।
सुसमाचार : सन्त लूकस 14:15-24
15) साथ भोजन करने वालों में किसी ने यह सुन कर ईसा से कहा, ’’धन्य है वह, जो ईश्वर के राज्य में भोजन करेगा!’’
16) ईसा ने उत्तर दिया, ’’किसी मनुष्य ने एक बड़े भोज का आयोजन किया और बहुत-से लोगों को निमन्त्रण दिया।
17) भोजन के समय उसने अपने सेवक द्वारा निमन्त्रित लोगों को यह कहला भेजा कि आइए, क्योंकि अब सब कुछ तैयार है।
18) लेकिन वे सभी बहाना करने लगे। पहले ने कहा, ’मैंने खेत मोल लिया है और मुझे उसे देखने जाना है। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’
19) दूसरे ने कहा, ’मैंने पाँच जोड़े बैल ख़रीदे हैं और उन्हें परखने जा रहा हूँ। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’
20) और एक ने कहा, ’’मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता’।
21) सेवक ने लौट कर यह सब स्वामी को बता दिया। तब घर के स्वामी ने क्रुद्ध हो कर अपने सेवक से कहा, ’शीघ्र ही नगर के बाज़ारों और गलियों में जा कर कंगालों, लूलों, अन्धों और लँगड़ों को यहाँ बुला लाओ’।
22) जब सेवक ने कहा, ’स्वामी! आपकी आज्ञा का पालन किया गया है; तब भी जगह है’,
23) तो स्वामी ने नौकर से कहा, ’सड़कों पर और बाड़ों के आसपास जा कर लोगों को भीतर आने के लिए बाध्य करो, जिससे मेरा घर भर जाये;
24) क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, उन निमन्त्रित लोगों में कोई भी मेरे भोजन का स्वाद नहीं ले पायेगा’।’’