पहला पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 13:8-10

8) भातृप्रेम का ऋण छोड़कर और किसी बात में किसी के ऋणी न बनें। जो दूसरों को प्यार करता है, उसने संहिता के सभी नियमों का पालन किया है।

9 ’व्यभिचार मत करो, हत्या मत करो, चोरी मत करो, लालच मत करो’ -इनका तथा अन्य सभी दूसरी आज्ञाओं का सारांश यह है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।

10) प्रेम पड़ोसी के साथ अन्याय नहीं करता। इसलिए जो प्यार करता है, वह संहिता के सभी नियमों का पालन करता है।

सुसमाचार : सन्त लूकस 14:25-33

25) ईसा के साथ-साथ एक विशाल जन-समूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा,

26) ’’यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

27) जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

28) ’’तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर ख़र्च का हिसाब न लगाये और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है?

29) कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें,

30 ’इस मनुष्य ने निर्माण-कार्य प्रारम्भ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका’।

31) ’’अथवा कौन ऐसा राजा होगा, जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि जो बीस हज़ार की फ़ौज के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्या वह दस हज़ार की फौज़ से उसका सामना कर सकता है?

32) यदि वह सामना नहीं कर सकता, तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेज कर सन्धि के लिए निवेदन करेगा।

33) ’’इसी तरह तुम में जो अपना सब कुछ नहीं त्याग देता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।