पहला पाठ: प्रज्ञा-ग्रन्थ 18:14-16;19:6-9

14) जब सारी पृथ्वी पर गहरा सन्नाटा छाया हुआ था और रात्रि तीव्र गति से आधी बीत चुकी थी,

15 (15-16) तब तेरा सर्वशक्तिमान् वचन, तेरे अपरिवर्तनीय निर्णय की तलवार ले कर, स्वर्ग में तेरे राजकीय सिंहासन पर से एक दुर्दम्य योद्धा की तरह उस अभिशप्त देश में कूद पड़ा। वह उठ खड़ा हुआ और उसने सर्वत्र मृत्यु का आतंक फैला दिया। उसका सिर आकाश को छू रहा था और उसके पैर पृथ्वी पर थे।

6) समस्त सृष्टि का, सभी तत्वों के साथ, नवीकरण किया गया और वह तेरे आदेशों का पालन करती थी, जिससे तेरे पुत्र सुरक्षित रह सकें।

7) बादल उनके शिविर पर छाया करते थे। जहाँ पहले जलाषय था, वहाँ सूखी भूमि, लाल समुद्र के पार जाने वाला अबाध मार्ग और तूफानी लहरों में एक हरा मैदान दिखाई पड़ा।

8) इस प्रकार सारी प्रजा ने तेरे अपूर्व कार्य देखने के बाद, तेरे हाथ का संरक्षण पा कर, लाल समुद्र पार किया।

9) प्रभु! वे तेरी, अपने मुक्तिदाता की स्तुति करते हुए घोड़ों की तरह विचरते और मेमनों की तरह उछलते-कूदते थे।

सुसमाचार : सन्त लूकस 18:1-8

1) नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए-यह समझाने के लिए ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया।

2) ‘‘किसी नगर में एक न्यायकर्ता था, जो न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता था।

3) उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए’।

4) बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता हूँ,

5) किन्तु वह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं उसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे’।’’

6) प्रभु ने कहा, ‘‘सुनते हो कि वह अधर्मी न्यायकर्ता क्या कहता है?

7) क्या ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?

8) मैं तुम से कहता हूँ-वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव पुत्र आयेगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास बचा हुआ पायेगा?’’