पवित्र परिवार
📒 पहला पाठ : प्रवक्ता 3:2-6,12-14
2) पुत्रों! पिता की शिक्षा ध्यान से सुनो; उसका पालन करने में तुम्हारा कल्याण है।
3) प्रभु का आदेश है कि सन्तान अपने पिता का आदर करें ; उसने माता केा अपने बच्चों पर अधिकार दिया है।
4) जो अपने पिता पर श्रद्धा रखता है, वह अपने पापों का प्रायश्चित करता है
5) और जो अपनी माता का आदर करता है, वह मानो धन का संचय करता है।
6) जो अपने पिता का सम्मान करता है, उसे अपनी ही सन्तान से सुख मिलेगा और जब वह प्रार्थना करता है, तो ईश्वर उसकी सुन लेगा।
12) अपने पिता के अपमान पर गौरव मत करो, उसका अपयश तुम को शोभा नहीं देता।
13) पिता का सम्मान मनुष्य का गौरव है और माता का अपयश पुत्र को शोभा नहीं देता।
14) पुत्र! अपने बूढ़े पिता की सेवा करो। जब तक वह जीता रहता है, उसे उदास मत करो।
📕 दूसरा पाठ : कलोसियों 3:12-21 या 3:12-17
12) आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।
13) आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।
14) इसके अतिरिक्त, आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।
15) मसीह की शान्ति आपके हृदय में राज्य करे। इसी शान्ति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें।
16) मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करें। आप बड़ी समझदारी से एक दूसरे को शिक्षा और उपदेश दिया करें। आप कृतज्ञ हृदय से ईश्वर के आदर में भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाया करें।
17) आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।
18) जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिए उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें।
19) पति अपनी पत्नियों को प्यार करें और उनके साथ कठोर व्यवहार नहीं करें।
20) बच्चे सभी बातों में अपने माता-पिता की आज्ञा मानें, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है ।
21) पिता अपने बच्चों को खिझाया नहीं करें। कहीं ऐसा न हो कि उनका दिल टूट जाये।
📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 2:22-40
22) जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये;
23) जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है: हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये
24) और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पण्डुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें।
25) उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था।
26) उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा।
27) वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर आया। माता-पिता शिशु ईसा के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये,
28) तो सिमेयोन ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा,
29) ’’प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर;
30) क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है,
31) जिसे तूने सब राष़्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है।
32) यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।’’
33) बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये।
34) सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, ’’देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिन्ह है जिसका विरोध किया जायेगा।
35) इस प्रकार बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।
36) अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर
37) विधवा हो गयी थी और अब चैरासी बरस की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी।
38) वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताने लगी।
39) प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया-अपनी नगरी नाज़रेत-लौट गये।
40) बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उसपर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा