सामान्य काल
तीसवाँ सप्ताह
आज के संत: सब संतों का महोत्सव
📙 पहला पाठ: प्रकाशना 7: 2-4, 9-14
2 मैंने एक अन्य दूत को पूर्व से ऊपर उठते देखा। जीवन्त ईश्वर की मुहर उसके पास थी और उसने उन चार दूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र को उजाड़ने का अधिकार मिला था, पुकार कर कहा,
3 “जब तक हम अपने ईश्वर के दासों के मस्तक पर मुहर न लगायें, तब तक तुम न तो पृथ्वी को उजाड़ो, न समुद्र को और न वृक्षों को”।
4 और मैंने मुहर लगे लोगों की संख्या सुनी- यह एक लाख चैवालीस हजार थी और वे इस्राएलियों के सभी वंशों में से थे:
9 इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे
10 और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, “सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!”
11 तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की,
12 “आमेन! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !”
13 वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, “ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं?
14 मैंने उत्तर दिया, “महोदय! आप ही जानते हैं” और उसने मुझ से कहाँ, “ये वे लोग हैं, जो महासंकट से निकल कर आये हैं। इन्होंने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।
📘 दूसरा पाठ: 1 योहन 3: 1-3
1 पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है।
2 प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है।
3 जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है।
📕 सुसमाचार: संत मत्ती 5: 1-12
1 ईसा यह विशाल जनसमूह देख कर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गये। उनके शिष्य उनके पास आये
2 और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
3 “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं ! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
4 धन्य हैं वे जो नम्र हैं ! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
5 धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं ! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
6 धन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं ! वे तृप्त किये जायेंगे।
7 धन्य हैं वे, जो दयालु हैं! उन पर दया की जायेगी।
8 धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
9 धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
10 धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
11 “धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
12 खुश हो और आनन्द मनाओ- स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।