सामान्य काल
छब्बीसवाँ सप्ताह
आज की संत: बालक येसु की संत तेरेसा कुँवारी धर्माचार्या, मिशन की संरक्षिका

📙 पहला पाठ: 1 कुरिन्थियों 13: 4-13

4 प्रेम सहनशील और दयालु है। प्रेम न तो ईर्ष्या करता है, न डींग मारता, न घमण्ड, करता है।

5 प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुंझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है।

6 वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है।

7 वह सब-कुछ ढाँक देता है, सब-कुछ पर विश्वास करता है, सब-कुछ की आशा करता है और सब-कुछ सह लेता है।

8 भविष्यवाणियाँ जाती रहेंगी, भाषाएँ मौन हो जायेंगी और ज्ञान मिट जायेगा, किन्तु प्रेम का कभी अन्त नहीं होगा;

9 क्योंकि हमारा ज्ञान तथा हमारी भविष्यवाणियाँ अपूर्ण हैं

10 और जब पूर्णता आ जायेगी, तो जो अपूर्ण है, वह जाता रहेगा।

11 मैं जब बच्चा था, तो बच्चों की तरह बोलता, सोचता और समझता था; किन्तु सयाना हो जाने पर मैंने बचकानी बातें छोड़ दीं।

12 अभी तो हमें आईने में धुँधला-सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊँगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।

13 अभी तो विश्वास, भरोसा और प्रेम-ये तीनों बने हुए हैं। किन्तु उनमें प्रेम ही सब से महान् हैं।


📕 सुसमाचार: संत मत्ती 18: 1-5

1 उस समय शिष्य ईसा के पास आ कर बोले, “स्वर्ग के राज्य में सब से बड़ा कौन है?”

2 ईसा ने एक बालक को बुलाया और उसे उनके बीच खड़ा कर

3 कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- यदि तुम फिर छोटे बालकों-जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे।

4 इसलिए जो अपने को इस बालक-जैसा छोटा समझता है, वह स्वर्ग के राज्य में सब से बड़ा है

5 और जो मेरे नाम पर ऐसे बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है।