सामान्य काल
दसवाँ सप्ताह
आज के संत : संत गेतूलियस शहीद
📒पहला पाठ: 1 राजाओं 17 : 1 – 6
1 गिलआद के तिशबे-निवासी एलियाह ने अहाब से कहा, “इस्राएल के उस जीवन्त प्रभु-ईश्वर की शपथ, जिसका मैं सेवक हूँ! जब तक मैं नहीं कहूँगा, तब तक अगले वर्षों में न तो ओस गिरेगी और न पानी बरसेगा।”
2 इसके बाद एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई दी,
3 “यहाँ से पूर्व की ओर जाओ और यर्दन नदी के पूर्व करीत घाटी में छिपे रहो।
4 तुम नदी का पानी पिओगे। मैंने कौवों को आदेश दिया कि वे वहाँ तुम्हें भोजन दिया करें।”
5 प्रभु ने जैसा कहा, एलियाह ने वैसा ही किया। वह जा कर यर्दन के पूर्व करीत की घाटी में रहने लगा।
6 कौवे सुबह शाम उसे रोटी और मांस ला कर देते थे और वह नदी का पानी पीता था।
📙सुसमाचार : संत मत्ती 5 : 1-12
1 ईसा यह विशाल जनसमूह देख कर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गये। उनके शिष्य उनके पास आये
2 और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
3 “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं ! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
4 धन्य हैं वे जो नम्र हैं ! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
5 धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं ! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
6 धन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं ! वे तृप्त किये जायेंगे।
7 धन्य हैं वे, जो दयालु हैं! उन पर दया की जायेगी।
8 धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
9 धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
10 धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
11 “धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
12 खुश हो और आनन्द मनाओ- स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।