चालीसा – काल
चालीसे का चौथा रविवार
आज के संत: अरमेनिया के चालीस शहीद
📒 पहला पाठ: दुसरा इतिहास ग्रन्थ 36: 14 – 17, 19 – 23
14 याजकों के नेताओं में और जनता में भी बहुत अधिक अधर्म फैल गया, क्योंकि उन्होंने गै़र-यहूदी राष्ट्रों के घृणित कार्यों का अनुकरण किया और प्रभु द्वारा प्रतिष्ठित येरूसालेम को मन्दिर अपवित्र कर दिया।
15 प्रभु, उनके पूर्वजों का ईश्वर उनके पास अपने दूतों को निरन्तर भेजता रहा; क्योंकि उसे अपने मन्दिर तथा अपनी प्रजा पर तरस आता था।
16 किन्तु उन्होंने ईश्वर के दूतों का उपहास किया, उसके उपदेशों का तिरस्कार किया और उसके नबियों की हँसी उड़ायी। अन्त में ईश्वर का क्रोध अपनी प्रजा पर फूट पड़ा और उस से बचने का कोई उपाय नहीं रहा।
17 प्रभु ने खल्दैयियों के राजा को उनके विरुद्ध भेजा, जिसने उनके मन्दिर में ही उनके नौजवानों को तलवार के घाट उतार दिया और युवकों, युवतियों, वृद्धों और अतिवृद्धों पर भी दया नहीं की। ईश्वर ने सब को नबूकदनेज़र के हाथ दिया था।
19 बाबुल के लोगों ने ईश्वर का मन्दिर जलाया, येरूसालेम की चारदीवारी गिरा दी, उसके सब महलों का आग लगा कर सर्वनाश किया और उसकी सब बहुमूल्य वस्तुएँ नष्ट कर दीं।
20 जो लोग तलवार से बच गये, उन्हें बन्दी बना कर बाबुल ले जाया गया। वहाँ वे तब तक राजा और उसके वंशजों के दास बने रहे, जब तक फ़ारसी लोगों का राज्य स्थापित नहीं हुआ।
21 इस तरह यिरमियाह के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो गया- ‘विश्राम-दिवस अपवित्र करने के प्रायश्चित के रूप में यूदा की भूमि उजड़ कर सत्तर वर्षाें तक परती पड़ी रहेगी’।
22 यिरमियाह द्वारा घोषित अपनी वाणी पूरी करने के लिए प्रभु ने फ़ारस के राजा सीरुस को उसके शासनकाल के प्रथम वर्ष में प्रेरित किया कि वह अपने सम्पूर्ण राज्य में यह लिखित राजाज्ञा प्रसारित करेः
23 “फ़ारस के राजा सीरुस कहते हैः प्रभु, स्वर्ग के ईश्वर ने मुझे पृथ्वी के सब राज्य प्रदान किये और उसने मुझे यहूदिया के येरूसालेम में एक मन्दिर बनवाने का आदेश दिया है। ईश्वर उनके साथ रहे, जो तुम लोगों में उसकी प्रजा के सदस्य हैं। वे लोग येरूसालेम की ओर प्रस्थान करें।”
📕 दूसरा पाठ : एफ़ेसियों 2: 4 – 10
4 परन्तु ईश्वर की दया अपार है। हम अपने पापों के कारण मर गये थे, किन्तु उसने हमें इतना प्यार किया
5 कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन प्रदान किया। उसकी कृपा ने आप लोगों का उद्धार किया।
6 उसने ईसा मसीह के द्वारा हम लोगों को पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में बैठाया।
7 उसने ईसा मसीह में जो दयालुता दिखायी, उसके द्वारा उसने आगामी युगों के लिए अपने अनुग्रह की असीम समृद्धि को प्रदर्शित किया।
8 उसकी कृपा ने विश्वास द्वारा आप लोगों का उद्धार किया है। यह आपके किसी पुण्य का फल नहीं है। यह तो ईश्वर का वरदान है।
9 यह आपके किसी कर्म का पुरस्कार नहीं -कहीं ऐसा न हो कि कोई उस पर गर्व करे।
10 ईश्वर ने हमारी रचना की। उसने ईसा मसीह द्वारा हमारी सृष्टि की, जिससे हम पुण्य के कार्य करते रहें और उसी मार्ग पर चलते रहें, जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है।
📙 सुसमाचार : सन्त योहन : 3 – 14 – 21
14 जिस तरह मूसा ने मरुभूमि में साँप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है,
15 जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे।”
16 ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।
17 ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा कि वह संसार को दोषी ठहराये। उसने उसे इसलिए भेजा कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे।
18 जो पुत्र में विश्वास करता है, वह दोषी नहीं ठहराया जाता है। जो विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; क्योंकि वह ईश्वर के एकलौते पुत्र के नाम में विश्वास नहीं करता।
19 दण्डाज्ञा का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कर्म बुरे थे।
20 जो बुराई करता है, वह ज्योंति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कर्म प्रकट न हो जायें।
21 किन्तु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो कि उसके कर्म ईश्वर की प्रेरणा से हुए हैं।