सामान्य काल
वर्ष का बत्तीसवाँ रविवार
आज के संत: संत लियो महान् पोप, धर्माचार्य
📙 पहला पाठ: 1 राजाओं 17: 10-16
10 एलियाह उठ कर सरेप्ता गया। शहर के फाटक पर पहुँच कर उसने वहाँ लकड़ी बटोरती हुई एक विधवा को देखा और उसे बुला कर कहा, “मुझे पीने के लिए घड़े में थोड़ा-सा पानी ला दो”।
11 वह पानी लाने जा ही रही थी कि उसने उसे पुकार कर कहा, “मुझे थोड़ी-सी रोटी भी ला दो”।
12 उसने उत्तर दिया, “आपका ईश्वर, जीवन्त प्रभु इस बात का साक्षी है कि मेरे पास रोटी नहीं रह गयी है। मेरे पास बरतन में केवल मुट्ठी भर आटा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है। मैं दो-एक लकड़ियाँ बटोरने आयी हूँ। अब घर जा कर उसे अपने लिए और अपने बेटे के लिए पकाती हूँ। हम उसे खायेंगे और इसके बाद हम मर जायेंगे।
13 एलियाह ने उस से कहा, “मत डरो। जैसा तुमने कहा, वैसा ही करो। किन्तु पहले मेरे लिये एक छोटी-सी रोटी पका कर ले आओ। इसके बाद अपने लिए और अपने बेटे के लिए तैयार करना;
14 क्योंकि इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः जिस दिन तक प्रभु पृथ्वी पर पानी न बरसाये, उस दिन तक न तो बरतन में आटा समाप्त होगा और न तेल की कुप्पी खाली होगी ।”
15 एलियाह ने जैसा कहा था, स्त्री ने वैसा ही किया और बहुत दिनों तक उस स्त्री, उसके पुत्र और एलियाह को खाना मिलता रहा।
16 जैसा कि प्रभु ने एलियाह के मुख से कहा था, न तो बरतन में आटा समाप्त हुआ और न तेल की कुप्पी ख़ाली हुई।
📘 दूसरा पाठ: इब्रानियों 9: 24-28
24 क्योंकि ईसा ने हाथ के बने हुए उस मन्दिर में प्रवेश नहीं किया, जो वास्तविक मन्दिर का प्रतीक मात्र है। उन्होंने स्वर्ग में प्रवेश किया है, जिससे वह हमारी ओर से ईश्वर के सामने उपस्थित हो सकें।
25 प्रधानयाजक किसी दूसरे का रक्त ले कर प्रतिवर्ष परमपावन मन्दिर-गर्भ में प्रवेश करता है। ईसा के लिए इस तरह अपने को बार-बार अर्पित करने की आवश्यकता नहीं है।
26 यदि ऐसा होता तो संसार के प्रारम्भ से उन्हें बार-बार दुःख भोगना पड़ता, किन्तु अब युग के अन्त में वह एक ही बार प्रकट हुए, जिससे वह आत्मबलिदान द्वारा पाप को मिटा दें।
27 जिस तरह मनुष्यों के लिए एक ही बार मरना और इसके बाद उनका न्याय होना निर्धारित है,
28 उसी तरह मसीह बहुतों के पाप हरने के लिए एक ही बार अर्पित हुए। वह दूसरी बार प्रकट हो जायेंगे- पाप के कारण नहीं, बल्कि उन लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए, जो उनकी प्रतीक्षा करते हैं।
📕 सुसमाचार: संत मारकुस 12: 38-44
38 ईसा ने शिक्षा देते समय कहा, “शास्त्रियों से सावधान रहो। लम्बे लबादे पहन कर टहलने जाना, बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना,
39 सभागृहों में प्रथम आसनों पर और भोजों में प्रथम स्थानों पर विराजमान होना- यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।
40 वे विधवाओं की सम्पत्ति चट कर जाते और दिखावे के लिए लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करते हैं। उन लोगों को बड़ी कठोर दण्डाज्ञा मिलेगी।”
41 ईसा ख़जाने के सामने बैठ कर लोगों को उस में सिक्के डालते हुए देख रहे थे। बहुत-से धनी बहुत दे रहे थे।
42 एक कंगाल विधवा आयी और उसने दो अधेले अर्थात् एक पैसा डाल दिया।
43 इस पर ईसा ने अपने शिष्यों को बुला कर कहा, “मैं तुम से यह कहता हूँ – ख़जाने में पैसे डालने वालों में से इस विधवा ने सब से अधिक डाला है;
44 क्योंकि सब ने अपनी समृद्धि से कुछ डाला, परन्तु इसने तंगी में रहते हुए भी जीविका के लिए अपने पास जो कुछ था, वह सब दे डाला।”