सामान्य काल
दसवाँ सप्ताह
आज के संत : साहगुन के संत योहन, पुरोहित
📒पहला पाठ: 1 राजाओं 1 18 20 39
20 अहाब ने सब इस्राएलियों को बुला भेजा और नबियों को करमेल पर्वत पर एकत्र किया।
21 तब एलियाह ने जनता के सामने आ कर कहा, “तुम लोग कब तक आगा-पीछा करते रहोगे? यदि प्रभु ही ईश्वर है, तो उसी के अनुयायी बनो और यदि बाल ईश्वर है, तो उसी के अनुयायी बनो।” किन्तु लोगों ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।
22 तब एलियाह ने जनता से कहा, “मैं प्रभु का अकेला नबी रह गया हूँ। बाल के नबियों की संख्या साढ़े चार सौ है।
23 हमें दो साँड़ दो। वे उन दोनों में से एक को अपने लिए चुन लें, उसके टुकड़े-टुकड़े करें और लकड़ी पर रख दें, किन्तु वे उस में आग नहीं लगायें। मैं दूसरा साँड़ तैयार कर उसे लकड़ी पर रखूँगा और उस में आग नहीं लगाऊँगा।
24 तुम अपने देवता का नाम ले कर प्रार्थना करो और मैं अपने प्रभु का नाम ले कर प्रार्थना करूँगा- जो देवता आग भेज कर उत्तर देगा, वही ईश्वर है।” सारी जनता ने यह कहते हुए उत्तर दिया, “हमें स्वीकार है”।
25 तब एलियाह ने बाल के नबियों से कहा, “तुम्हारी संख्या अधिक है, इसलिए तुम अपने लिए एक साँड़ चुन लो और उसे तैयार करो। अपने देवता का नाम ले कर प्रार्थना करो, किन्तु आग नहीं लगाओ।”
26 उन्होंने अपने को दिया हुआ साँड़ ले कर तैयार दिया। तब वे सुबह से दोपहर तक यह कहते हुए बाल से प्राथना करते रहे, “बाल! हमारी सून।” किन्तु कोई वाणी नहीं सुनाई पड़ी, कोई उत्तर नहीं मिला, यद्यपि वे अपनी बनायी हुई वेदी के चारों ओर घुटने झुकाते हुए नाचते रहे। दोपहर के लगभग एलियाह यह कहते हुए
27 उनका उपहास करने लगा, “तुम लोग और जोर से पुकारो। वह तो देवता है न? वह किसी सोच-विचार में पड़ा हुआ होगा या किसी काम में लगा हुआ होगा या यात्रा पर होगा। हो कसता है- वह सोया हुआ हो, तो उसे जगाना पड़े।”
28 वे और जोर से पुकारने और अपने रिवाज के अनुसार अपने को तलवारों और भालों से काट मारने लगे, यहाँ तक कि वे रक्त से लथपथ हो गये।
29 वे दोपहर के बाद भी सान्ध्योपासना के समय तक ऐसा करते रहे, किन्तु न तो कोई वाणी सुनाई पड़ी और न कोई उत्तर मिला। उनकी प्रार्थना पर ध्यान ही नहीं दिया गया।
30 तब एलियाह ने जनता से कहा, “मेरे पास आओ”। अब लोग उसके पास आये और एलियाह ने प्रभु की वेदी फिर बनायी, जो गिरा दी गयी थी।
31 प्रभु ने याकूब से कहा था कि तुम्हारा नाम इस्राएल होगा। उसी याकूब के पुत्रों के वंशों की संख्या के अनुसार एलियाह ने बारह पत्थर लिये और उन से प्रभु के लिए एक वेदी बनायी।
32 उसने उसके चारों ओर एक नाला खोदा, जिस में अनाज के दो पैमाने समा सकते थे।
33 तब उसने लकड़ियाँ वेदी पर सजायीं, साँड़ के टूकड़े-टुकड़े कर दिये और उसे लकड़ी पर रखा।
34 तब उसने कहा, “चार घड़े पानी से भर कर होम-बलि और लकड़ी पर उँढ़ेल दो”। उसके बाद उसने कहा, “एक बार और यही करो”। जब उन्होंने ऐसा किया, तो उसने कहा, “तीसरी बार यही करो”।
35) जब उन्होंने तीसरी बार ऐसा किया, तो पानी वेदी पर से चारों ओर बहने लगा और नाला पानी से भर गया।
36 सान्ध्योपासना के समय नबी एलियाह ने आगे बढ़ कर कहा, “इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के ईश्वर! आज यह दिखाने की कृपा कर कि तू इस्राएल का ईश्वर है और यह कि मैं – तेरे सेवक- ने यह सब तेरे आदेश के अनुसार किया है।
37 मेरी सुन! प्रभु! मेरी सुन! जिससे यह प्रजा स्वीकार करे कि तू, प्रभु सच्चा ईश्वर है। इस प्रकार तू इसका हृदय फिर अपनी ओर उन्मुख कर देगा।”
38 इस पर प्रभु की आग बरस पड़ी। उसने होम-बलि, लकड़ी, पत्थर और मिट्टी- सब कुछ भस्म कर दिया और नाले का पानी भी सुखा दिया।
39 लोग यह देख मुँह के बल गिर पड़े और बोल उठे, “प्रभु ही ईश्वर है! प्रभु ही ईश्वर है!”
📙सुसमाचार : संत मत्ती 5 : 17 – 19
17 “यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।
18 मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- आकाश और पृथ्वी भले ही टल जाये, किन्तु संहिता की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी पूरा हुए बिना नहीं टलेगा।
19 इसलिए जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जायेगा।