सामान्य – काल

छठाँ सप्ताह

आज के संत: संत काथरीन दे रिची कुँवारी

📒 पहला पाठ: याकूब 1 : 12 – 18

12 धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है; परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का वह मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।

13 प्रलोभन में पड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति यह न कहे कि ईश्वर मुझे प्रलोभन देता है। ईश्वर न तो बुराई के प्रलोभन में पड़ सकता और न किसी को प्रलोभन देता है।

14 जो प्रलोभन में पड़ता है, वह अपनी ही वासना द्वारा खींचा और बहकाया जाता है।

15 वासना के गर्भ से पाप का जन्म होता है और पाप विकसित हो कर मृत्यु को जन्म देता है।

16 प्रिय भाइयो! आप गलती न करें।

17 सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर के हैं और नक्षत्रों के उस सृष्टिकर्ता के यहाँ से उतरते हैं, जिसमें न तो कोई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अन्धकार।

18 उसने अपनी ही इच्छा से सत्य की शिक्षा द्वारा हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बनें।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 8 : 14 – 21

14 शिष्य रोटियाँ लेना भूल गये थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी।

15 उस समय ईसा ने उन्हें यह चेतावनी दी, “सावधान रहो। फ़रीसियों के ख़मीर और हेरोद के ख़मीर से बचते रहो”।

16 इस पर वे आपस में कहने लगे, “हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए यह ऐसा कहते हैं”।

17 ईसा ने यह जान कर उन से कहा, “तुम लोग यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए यह ऐसा कहते है? क्या तुम अब तक नहीं जान सके हो? नही समझ गये हो? क्या तुम्हारी बुद्धि मारी गयी है?

18 क्या आँखें रहते भी तुम देखते नहीं? और कान रहते भी तुम सुनते नहीं? क्या तुम्हें याद नही है-

19 जब मैने उन पाँच हज़ार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टूकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?” शिष्यों ने उत्तर दिया, “बारह”।

20 “और जब मैंने चार हज़ार लोगों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टुकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?” उन्होंने उत्तर दिया, “सात”।

21 इस पर ईसा ने उन से कहा, “क्या तुम लोग अब भी नहीं समझ सके?”