सामान्य-काल
चौदहवाँ सप्ताह
आज के संत: संत हेनरी
📒 पहला पाठ: इसायाह 6:1-8
1 राजा उज़्ज़ीया के देहान्त के वर्ष मैंने प्रभु को एक ऊँचे सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उसके वस्त्र का पल्ला मन्दिर का पूरा फ़र्श ढक रहा था।
2 उसके ऊपर सेराफ़म विराजमान थे, उनके छः-छः पंख थेः दो चेहरा ढकने, दो पैर ढकने और दो उड़ने के लिए
3 और वे एक दूसरे को पुकार-पुकार कर यह कहते थे, “पवित्र, पवित्र, पवित्र है विश्वमडल का प्रभु! उसकी महिमा समस्त पृथ्वी में व्याप्त है।“
4 पुकारने वाले की आवाज़ से प्रवेशद्वार की नींव हिल उठी और मन्दिर धुएँ से भर गया।
5 मैंने कहा, “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ और अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों को बीच रहता हूँ और मैंने विश्वमण्डल के प्रभु, राजाधिराज को अपनी आँखों से देखा“।
6 एक सेराफ़ीम उड़ कर मेरे पास आया। उसके हाथ में एक अंगार था, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से ले लिया था।
7 उस से मेरा मुँह छू कर उसने कहा, “देखिए, अंगार ने आपके होंठों का स्पर्श किया है। आपका पाप दूर हो गया और आपका अधर्म मिट गया है।”
8 तब मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी “मैं किसे भेजूँ? हमारा सन्देश-वाहक कौन होगा?“ और मैंने उत्तर दिया, “मैं प्रस्तुत हूँ, मुझ को भेज!“
📙 सुसमाचार: मत्ती 10:24-33
24 “न शिष्य गुरु से बड़ा होता है और न सेवक अपने स्वामी से।
25 शिष्य के लिए अपने गुरु-जैसा और सेवक के लिए अपने स्वामी-जैसा बन जाना ही बहुत है। यदि लोगों ने घर के स्वामी को बेलज़ेबुल कहा है, तो वे उसके घर वालों को क्या नहीं कहेंगे?
26 “इसलिए उन से नहीं डरो। ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा।
27 मैं जो तुम से अँधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें फुसफुसहाटों में कहा जाता है, उसे तुम पुकार-पुकार कर कह दो।
28 “उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते; बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा, दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।
29 “क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के अनजाने में उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती।
30 हाँ, तुम्हारे सिर का बाल-बाल गिना हुआ है।
31 इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।
32 “जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा
33 और जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।