पास्का-काल
सातवाँ सप्ताह
आज की संत: फातिमा की महारानी
📒 पहला पाठ: प्रेरित – चरित 19 : 1 – 8
1 जिस समय अपोल्लोस कुरिन्थ में था, पौलुस भीतरी प्रदेशों का दौरा समाप्त कर एफे़सुस पहुँचा। वहाँ उसे कुछ शिष्य मिले।
2 उसने उन से पूछा, “क्या विश्वासी बनते समय आप लोगों को पवित्र आत्मा प्राप्त हुआ था?” उन्होंने उत्तर दिया, “हमने यह भी नहीं सुना है कि पवित्र आत्मा होता है”।
3 इस पर उसने पूछा, “तो, आप को किसका बपतिस्मा मिला?” उन्होंने उत्तर दिया, “योहन का बपतिस्मा”।
4 पौलुस ने कहा, “योहन पश्चात्ताप का बपतिस्मा देते थे। वह लोगों से कहते थे कि आप को मेरे बाद आने वाले में-अर्थात् ईसा में- विश्वास करना चाहिए।”
5 उन्होंने यह सुन कर प्रभु ईसा के नाम पर बपतिस्मा ग्रहण किया।
6 जब पौलुस ने उन पर हाथ रखा, तो पवित्र आत्मा उन पर उतरा और वे भाषाएँ बोलते और भविष्यवाणी करते रहे।
7 वे कुल मिला कर लगभग बारह पुरुष थे।
8 पौलुस तीन महीनों तक सभागृह जाता रहा। वह ईश्वर के राज्य के विषय में निस्संकोच बोलता और यहूदियों को समझाता था
📙 सुसमाचार : संत योहन 16 : 29 – 33
29 उनके शिष्यों ने उन से कहा, “देखिये, अब आप दृष्टांतो में नहीं, बल्ेिक स्पष्ट शब्दों में बोल रहे हैं।
30 अब हम समझ गये है कि आप सब कुछ जानते हैं- प्रश्नों की कोई ज़रूरत नहीं रह गयी है। इसलिये हम विश्वास करते हैं कि आप ईश्वर के यहाँ से आये हैं।
31 ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम अब विश्वास करते हो?
32 देखो! वह घडी आ रही है, आ ही गयी है। जब तुम सब तितर-बितर हो जाओगे और अपना-अपना रास्ता ले कर मुझे अकेला छोड दोगे। फिर भी मैं अकेला नहीं हूँ, क्योंकि पिता मेरे साथ है।
33 मैंने तुम लोगों से यह सब इसलिये कहा है कि तुम मुझ में शांति प्राप्त कर सको। संसार में तुम्हें क्लेश सहना पडेगा। परन्तु ढारस रखो- मैंने संसार पर विजय पायी है।