सामान्य काल
वर्ष का अट्ठाईसवाँ रविवार
आज के संत: संत एडवर्ड शहीद
📙 पहला पाठ: प्रज्ञा 7: 7-11
7 मैंने प्रार्थना की और मुझे विवेक मिला। मैंने विनती की और मुझ पर प्रज्ञा का आत्मा उतरा।
8 मैंने उसे राजदण्ड और सिंहासन से ज्यादा पसन्द किया और उसकी तुलना में धन-दौलत को कुछ नहीं समझा।
9 मैंने उसकी तुलना अमूल्य रत्न से भी नहीं करना चाहा; क्योंकि उसके सामने पृथ्वी का समस्त सोना मुट्ठी भर बालू के सदृश है और उसके सामने चाँदी कीच ही समझी जायेगी।
10 मैंने उसे स्वास्थ्य और सौन्दर्य से अधिक प्यार किया और उसे अपनी ज्योति बनाने का निश्चय किया; क्योंकि उसकी दीप्ति कभी नहीं बुझती।
11 मुझे उसके साथ-साथ सब उत्तम वस्तुएँ मिल गयीं और उसके हाथों से अपार धन-सम्पत्ति।
📘 दूसरा पाठ: इब्रानियों 4: 12-13
12 क्योंकि ईश्वर का वचन जीवन्त, सशक्त और किसी भी दुधारी तलवार से तेज है। वह हमारी आत्मा के अन्तरतम तक पहुँचता और हमारे मन के भावों तथा विचारों को प्रकट कर देता है। ईश्वर से कुछ भी छिपा नहीं है।
13 उसकी आँखों के सामने सब कुछ निरावरण और खुला है। हमें उसे लेखा देना पड़ेगा।
📕 सुसमाचार: संत मारकुस 10: 17-30
17 ईसा किसी दिन प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, “भले गुरु! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”
18 ईसा ने उस से कहा, “मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।
19 तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो।”
20 उसने उत्तर दिया, “गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ”।
21 ईसा ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, “तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।“
22 यह सुनकर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23 ईसा ने चारों और दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, “धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!
24 शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। ईसा ने उन से फिर कहा, “बच्चों! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!
25 सूई के नाके से हो कर ऊँट निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश़्ा करना कठिन है?”
26 शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक दूसरे से बोले, “तो फिर कौन बच सकता है?”
27 उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, “मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है”।
28 तब पेत्रुस ने यह कहा, “देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।”
29 ईसा ने कहा, “मैं तुम से यह कहता हूँ – ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो
30 और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ-ही-साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन।