सामान्य-काल
वर्ष का पन्द्रहवाँ रविवार
आज के संत : लेल्लिस के संत कमिल्लुस पुरोहित, संस्थापक
📙पहला पाठ: आमोस 7: 12-15
12 बेतेल के याजक अमस्या ने आमोस से कहा, “नबी! यहाँ से चले जाओ। यूदा के देश भाग जाओ। वहाँ भवियवाणी करते हुए अपनी जीविका चलाओ।
13 बेतेल में भवियवाणी करना बन्द करो; क्योंकि यह तो राजकीय पुण्य-स्थान है, यह राज मन्दिर है।”
14 आमेास ने अमस्या को यह उत्तर दिया, “मैं न तो नबी था और न नबी की सन्तान। मैं चरवाहा था और गूलर के पेड़ छाँटने वाला।
15 मैं झुण्ड चरा ही रहा था कि प्रभु ने मुझे बुलाया मुझ से यह कहा, ‘जाओ! मेरी प्रजा इस्राएल के लिए भवियवाणी करो’।
📘दूसरा पाठ: एफेसियों 1: 3-14
3 धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता! उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं।
4 उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।
5 उसने प्रेम से प्रेरित हो कर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार
6 अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिला है,
7 जो अपने रक्त द्वारा हमें मुक्ति अर्थात् अपराधों की क्षमा दिलाते हैं। यह ईश्वर की अपार कृपा का परिणाम है,
8 जिसके द्वारा वह हमें प्रज्ञा तथा बुद्धि प्रदान करता रहता है।
9 (9-10 उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार निश्चय किया था कि वह समय पूरा हो जाने पर स्वर्ग तथा पृथ्वी में जो कुछ है, वह सब मसीह के अधीन कर एकता में बाँध देगा। उसने अपने संकल्प का यह रहस्य हम पर प्रकट किया है।
11 (11-12 ईश्वर सब बातों में अपने मन की योजना पूरी करता है। उसके अनुसार उसने निर्धारित किया है कि हम (यहूदी मसीह द्वारा बुलाये जायें और हम लोगों के कारण उसकी महिमा की स्तुति हो। हम लोगों ने तो सब से पहले मसीह पर भरोसा रखा था।
13 आप लोगों ने भी सत्य का वचन, अपनी मुक्ति का सुसमाचार, सुनने के बाद मसीह में विश्वास किया है और आप पर उस पवित्र आत्मा की मुहर लग गयी, जिसकी प्रतिज्ञा की गयी थी।
14 वह हमारी विरासत का आश्वासन है और ईश्वर की प्रजा की मुक्ति की तैयारी, जिससे उसकी महिमा की स्तुति हो।
📕सुसमाचार: संत मारकुस 6: 7 -13
7 ईसा शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव घूमते थे। वे बारहों को अपने पास बुला कर और उन्हें अपदूतों पर अधिकार दे कर, दो-दो करके, भेजने लगे।
8 ईसा ने आदेश दिया कि वे लाठी के सिवा रास्ते के लिए कुछ भी नहीं ले जायें- न रोटी, न झोली, न फेंटे में पैसा।
9 वे पैरों में चप्पल बाँधें और दो कुरते नहीं पहनें
10 उन्होंने उन से कहा, “जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो!
11 यदि किसी स्थान पर लोग तुम्हारा स्वागत न करें और तुम्हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।”
12 वे चले गये। उन्होंने लोगों को पश्चात्ताप का उपदेश दिया,
13 बहुत-से अपदूतों को निकाला और बहुत-से रोगियों पर तेल लगा कर उन्हें चंगा किया।