सामान्य काल

दसवाँ सप्ताह
आज के संत :
संत मथियास प्रेरित

📒पहला पाठ: 1 राजाओं 19 : 9, 11 – 16

9 एलियाह होरेब पर्वत के पास पहुँचा और एक गुफा के अन्दर चल कर उसने वहाँ रात बितायी। उसे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

10 उसने उत्तर दिया, “विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर के लिए अपने उत्साह के कारण मैं यहाँ हूँ। इस्राएलियों ने तेरा विधान त्याग दिया तेरी वेदियों को नष्ट कर डाला और तेरे नबियों को तलवार के घाट उतारा। मैं ही बच गया हूँ और वे मुझे मार डालना चाहते हैं।”

11 प्रभु ने उस से कहा, “निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ“। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था।

12 भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी।

13 एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। तब उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“

14 उसने उत्तर दिया, “विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर के लिए अपने उत्साह के कारण मैं यहाँ हूँ। इस्राएलियों ने तेरा विधान त्याग दिया, तेरी वेदियों को नष्ट कर डाला और तेरे नबियों को तलवार के घाट उतारा। मैं ही बच गया हूँ और वे मुझे भी मार डालना चाहते हैं।“

15 प्रभु ने उस से कहा, “जाओ, जिस रास्ते से आये हो, उसी से दमिश्क की मरुभूमि लौट जाओ। वहाँ पहुँच कर हज़ाएत का अराम के राजा के रूप में

16 और निमशी के पुत्र येहू को इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक करो। इसके बाद आबेल-महोला के निवासी, शफ़ाट के पुत्र एलीशा का अभिषेक करो, जिससे वह तुम्हारे स्थान में नबी हो।

📙सुसमाचार : संत मत्ती 5 : 27 – 32

27 “तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- व्यभिचार मत करो।

28 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका है।

29 “यदि तुम्हारी दाहिनी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न डाला जाये

30 और यदि तुम्हारा दाहिना हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न जाये।

31 “यह भी कहा गया है- जो अपनी पत्नी का परित्याग करता है, वह उसे त्यागपत्र दे दे।

32 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- व्यभिचार को छोड़ किसी अन्य कारण से जो अपनी पत्नी का परित्याग करता है,  वह उस से व्यभिचार कराता है और जो परित्यक्ता से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है।