सामान्य काल
पन्द्रहवाँ सप्ताह
आज के संत : संत बोनाबेन्चर धर्माध्यक्ष, धर्माचार्य

📙पहला पाठ: इसायह 1 : 10-17

10 सोदोम के शासको! प्रभु की वाणी सुनो। गोमारा की प्रजा! ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान दो।

11 प्रभु यह कहता है: “तुम्हारे असंख्य बलिदानों से मुझ को क्या? में तुम्हारे मेढ़ों और बछड़ों की चरबी से ऊब गया हूँ। मैं साँड़ों, मेमनों और बकरों का रक्त नहीं चाहता।

12 जब तुम मेरे दर्शन करते आते हो, तो कौन तुम से यह सब माँगता है? तुम मेरे प्रांगण क्यों रौंदते हो?

13 मेरे पास व्यर्थ का चढ़ावा लिये फिर नहीं आना। तुम्हारे लोबान से मुझे घृणा हो गयी है। अमावस, विश्राम-दिवस और तुम्हारी धर्म-सभाएँ। मैं अन्याय के कारण ये सब समारोह सहन नहीं करता।

14 तुम्हारे अमावस और अन्य पर्वों से मुझे घृणा हो गयी है, ये मेरे लिए असह्य भार बन गये हैं।

15 जब तुम अपने हाथ फैलाते हो, तो मैं तुम्हारी ओर से आँख फेर लेता हूँ। मैं तुम्हारी असंख्य प्रार्थनाओं को अनसुना कर देता हूँ। तुम्हारे हाथ रक्त से रँगे हुए हैं।

16 स्नान करो, शुद्ध हो जाओ। अपने कुकर्म मेरी आँखों के सामने से दूर करो। पाप करना छोड़ दो,

17 भलाई करना सीखो। न्याय के अनुसार आचरण करो, पद्दलितों को सहायता दो, अनाथों को न्याय दिलाओ और विधवाओं की रक्षा करो।


📕सुसमाचार: संत मत्ती 10 : 34 – 11:

34 “यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ। मैं शान्ति नहीं, बल्कि तलवार ले कर आया हूँ।

35 मैं पुत्र और पिता में, पुत्री और माता में, बहू और सास में फूट डालने आया हूँ।

36 मनुष्य के घर वाले ही उसके शत्रु बन जायेंगे।

37 “जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं।

38 जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं।

39 जिसने अपना जीवन सुरक्षित रखा है, वह उसे खो देगा और जिसने मेरे कारण अपना जीवन खो दिया है, वह उसे सुरक्षित रख सकेगा।

40 “जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।

41 जो नबी का इसलिए स्वागत करता है कि वह नबी है, वह नबी का पुरस्कार पायेगा और जो धर्मी का इसलिए स्वागत करता है कि वह धर्मी है, वह धर्मी का पुरस्कार पायेगा।

42 “जो इन छोटों में से किसी को एक प्याला ठंडा पानी भी इसलिए पिलायेगा कि वह मेरा शिष्य है, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।”

1 अपने बारह शिष्यों को ये अनुदेश देने के बाद ईसा यहूदियों के नगरों में शिक्षा देने और सुसमाचार का प्रचार करने वहाँ से चल दिये।