सामान्य – काल
दूसरा सप्ताह

आज के संत: संत जोसेफ वाज़, पुरोहित

📒 पहला पाठ: 1 कुरिन्थियों 1:18 – 25

18 जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं, वे क्रूस की शिक्षा को “मूर्खता” समझते हैं। किन्तु हम लोगों के लिए, जो मुक्ति के मार्ग पर चलते हैं, वह ईश्वर का सामर्थ्य है;

19 क्योंकि लिखा है-मैं ज्ञानियों का ज्ञान नष्ट करूँगा और समझदारों की चतुराई व्यर्थ कर दूँगा।

20 हम में ज्ञानी, शास्त्री और इस संसार के दार्शनिक कहाँ हैं? क्या ईश्वर ने इस संसार के ज्ञान को मूर्खता-पूर्ण नहीं प्रमाणित किया है?

21 ईश्वर की प्रज्ञा का विधान ऐसा था कि संसार अपने ज्ञान द्वारा ईश्वर को नहीं पहचान सका। इसलिए ईश्वर ने सुसमाचार की “मूर्खता” द्वारा विश्वासियों को बचाना चाहा।

22 यहूदी चमत्कार माँगते और यूनानी ज्ञान चाहते हैं,

23 किन्तु हम क्रूस पर आरोपित मसीह का प्रचार करते हैं। यह यहूदियों के विश्वास में बाधा है और गै़र-यहूदियों के लिए ’मूर्खता’।

24 किन्तु मसीह चुने हुए लोगों के लिए, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, ईश्वर का सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है;

25 क्योंकि ईश्वर की ’मूर्खता’ मनुष्यों से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की ’दुर्बलता’ मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है।

📙 सुसमाचार : संत मारकुस 1: 14 – 20

14 योहन के गिरफ़्तार हो जाने के बाद ईसा गलीलिया आये और यह कहते हुए ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते रहे,

15 “समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।”

16 गलीलिया के समुद्र के किनारे से हो कर जाते हुए ईसा ने सिमोन और उसके भाई अन्द्रेयस को देखा। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

17 ईसा ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।”

18 और वे तुरन्त अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

19 कुछ आगे बढ़ने पर ईसा ने ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को देखा। वे भी नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

20 ईसा ने उन्हें उसी समय बुलाया। वे अपने पिता ज़ेबेदी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।