सामान्य काल
अट्ठाईसवाँ सप्ताह
आज की संत: सिलेसिया की संत हेड्विग विधवा, धर्म-बहन

📙 पहला पाठ: गलातियों 5: 18-25

18 यदि आप आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलते है, तो संहिता के अधीन नहीं हैं।

19 शरीर के कुकर्म प्रत्यक्ष हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, लम्पटता,

20 मूर्तिपूजा, जादू-टोना, बैर, फूट, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थ-परता, मनमुटाव, दलबन्दी,

21 द्वेष, मतवालापन, रंगरलियाँ और इस प्रकार की और बातें। मैं आप लोगों से कहता हूँ जैसा कि मैंने पहले भी कहा- जो इस प्रकार का आचरण करते हैं, वे ईश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगे।

22 परन्तु आत्मा का फल है-प्रेम, आनन्द, शान्ति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता ईमानदारी,

23 सौम्यता और संयम। इनके विरुद्ध कोई विधि नहीं है।

24 जो लोग ईसा मसीह के हैं, उन्होंने वासनाओं तथा कामनाओं-सहित अपने शरीर को क्रूस पर चढ़ा दिया है।

25 यदि हमें आत्मा द्वारा जीवन प्राप्त हो गया है, तो हम आत्मा के अनुरूप जीवन बितायें।


📕 सुसमाचार: संत लूकस 11: 42-46

42 “फ़रीसियो! धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम पुदीने, रास्ने और हर प्रकार के साग का दशमांश तो देते हो; लेकिन न्याय और ईश्वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना, तुम्हारे लिए उचित था।

43 फ़रीसियो! धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम सभागृहों में प्रथम आसन और बाज़ारों में प्रणाम चाहते हो।

44 धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम उन क़ब्रों के समान हो, जो दीख नहीं पड़तीं और जिन पर लोग अनजाने ही चलते-फिरते हैं।”

45 इस पर एक शास्त्री ने ईसा से कहा, “गुरूवर! आप ऐसी बातें कह कर हमारा भी अपमान करते हैं”।

46 ईसा ने उत्तर दिया, “शास्त्रियों! धिक्कार तुम लोगों को भी! क्योंकि तुम मनुष्यों पर बहुत-से भारी बोझ लादते हो और स्वयं उन्हें उठाने के लिए अपनी तक उँगली भी नहीं लगाते।