चालीसा – काल
चालीसे का पाँचवाँ रविवार
आज के संत: संत पैट्रिक
📒 पहला पाठ: यिरमियाह 31: 31 – 34
31 प्रभु यह कहता हैः “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल के घराने और यूदा के घराने के साथ एक नया विधान स्थापित करूँगा।
32 यह उस विधान की तरह नहीं होगा, जिसे मैंने उस दिन उनके पूर्वजों के साथ स्थापित किया था, जब मैंने उन्हें मिस्र से निकालने के लिए हाथ से पकड़ लिया था। उस विधान को उन्होंने भंग कर दिया, यद्यपि मैं उनका स्वामी था।“ यह प्रभु की वाणी है।
33 “वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए एक नया विधान निर्धारित करूँगा।’ यह प्रभु की वाणी है। “मैं अपना नियम उनके अभ्यन्तर में रख दूँगा, मैं उसे उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।
34 इसकी जरूरत नहीं रहेगी कि वे एक दूसरे को शिक्षा दें और अपने भाइयों से कहें- ’प्रभु का ज्ञान प्राप्त कीजिए’ ; क्योंकि छोटे और बड़े, सब-के-सब मुझे जानेंगे।“ यह प्रभु की वाणी है। “मैं उनके अपराध क्षमा कर दूँगा, मैं उनके पापों की याद नहीं रखूँगा।“
📕 दूसरा पाठ : इब्रानियों 5 : 7 – 9
7 मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।
8 ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।
9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
📙 सुसमाचार : सन्त योहन 12 : 20 – 33
20 जो लोग पर्व के अवसर पर आराधना करने आये थे, उन में कुछ यूनानी थे।
21 उन्होने फि़लिप के पास आ कर यह निवेदन किया महाशय! हम ईसा से मिलना चाहते हैं। फि़लिप गलीलिया के बेथसाइदा का निवासी था।
22 उसने जाकर अन्द्रेयस को यह बताया और अन्द्रेयस ने फि़लिप को साथ ले जा कर ईसा को इसकी सूचना दी।
23 ईसा ने उन से कहा, “वह समय आ गया है, जब मानव पुत्र महिमान्वित किया जायेगा।“
24 मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ – जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परन्तु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।
25 जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और जो इस संसार में अपने जीवन से बैर करता है, वह उसे अनंत जीवन के लिये सुरक्षित रखता है।
26 यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है तो वह मेरा अनुसरण करे। जहाँ मैं हूँ वहीं मेरा सेवक भी होगा। जो मेरी सेवा करेगा, मेरा पिता उस को सम्मान प्रदान करेगा।
27 “अब मेरी आत्मा व्याकुल है। क्या मैं यह कहूँ – ’पिता ! इस घडी के संकट से मुझे बचा’? किन्तु इसलिये तो मैं इस घडी तक आया हूँ।
28 पिता! अपनी महिमा प्रकट कर। उसी समय यह स्वर्गवाणी सुनाई पडी, “मैने उसे प्रकट किया है और उसे फिर प्रकट करूँगा।“ आसपास खडे लोग यह सुनकर बोले, “बादल गरजा”।
29 कुछ लोगो ने कहा, “एक स्वर्गदूत ने उन से कुछ कहा”।
30 ईसा ने उत्तर दिया, “यह वाणी मेरे लिये नहीं बल्कि तुम लोगेा के लिये आयी।
31 अब इस संसार का न्याय हो रहा है। अब इस संसार का नायक निकाल दिया जायेगा।
32 और मैं, जब पृथ्वी के ऊँपर उठाया जाऊँगा तो सब मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करूँगा।
33 इन शब्दों के द्वारा उन्होने संकेत किया कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी।