सामान्य – काल
दूसरा सप्ताह

आज की संत: हंगरी की संत मार्गरेत

📒 पहला पाठ: समूएल का पहला ग्रन्थ 18: 6-9, 19: 1-7

6 जब दाऊद फ़िलिस्ती को मारने के बाद सेना के साथ लौटा, तो स्त्रियाँ इस्राएल के सब नगरों से निकल कर नाचते-गाते, डफली और झाँझ बजाते और जयकार करते हुए राजा साऊल की अगवानी करने गयीं।

7 वे नाचती हुई यह गा रही थीं- साऊल ने सहस्रों को मारा और दाऊद ने लाखों को।

8) साऊल यह सुन कर बुरा मान गया और बहुत अधिक क्रुद्ध हुआ। उसने अपने से कहा, “उन्होंने दाऊद को लाखों दिया और मुझे केवल सहस्रों को। अब राज्य के सिवा उसे किस बात की कमी है?”

9 उस समय से साऊल दाऊल को ईर्ष्या की दृष्टि से देखने लगा।

1 साऊल ने दाऊद की हत्या के विषय में अपने पुत्र योनातान और अपने सब दरबारियों से बातचीत की। साऊल का पुत्र योनातान दाऊद को बहुत प्यार करता था;

2 इसलिए उसने दाऊद से कहा, “मेरे पिता साऊल तुम को मार डालना चाहते हैं। कल सबेरे सावधान रहो। तुम किसी जगह छिप जाओ।

3 और मैं शहर से निकल कर उस मैदान में, जहाँ तुम होगे, अपने पिता के पास रहूँगा और तुम्हारे विषय में अपने पिता से बात करूँगा। जो कुछ मालूम होगा, मैं तुम्हें बता दूँगा।”

4 योनातान ने दाऊद का पक्ष ले कर अपने पिता से यह कहा, “राजा अपने सेवक दाऊद के साथ अन्याय न करें; क्योंकि उसने आपके विरुद्ध कोई पाप नहीं किया। उलटे; उसने जो कुछ किया, उस से आप को बड़ा लाभ हुआ।

5 उसने अपनी जान हथेली पर रख कर उस फ़िलिस्ती को मारा और इस प्रकार प्रभु ने सारे इस्राएल को महान् विजय दिलायी! आपने यह देखा और आनन्द मनाया। अब आप क्यों अकारण ही दाऊद को मार कर निर्दोष रक्त बहाना चाहते हैं?”

6 साऊल ने योनातान की बात मान ली और शपथ खा कर कहा, “जीवन्त ईश्वर की शपथ! दाऊद नहीं मारा जायेगा।”

7 इसके बाद योनातान ने दाऊद को अपने पास बुलाया और उसे ये सभी बातें बतायी। योनातान दाऊद को साऊल के पास ले आया और वह फिर पहले की तरह साऊल के साथ रहने लगा।

📙 सुसमाचार : संत मारकुस 3: 7-12

7 ईसा अपने शिष्यों के साथ समुद्र के तट गये। गलीलिया का एक विशाल जनसमूह उनके पीछे-पीछे हो लिया। यहूदिया,

8 येरूसालेम, इदूमैया, यर्दन के उस पार, और तीरूस तथा सीदोन के आस-पास से भी बहुत-से लोग उनके पास इकट्ठे हो गये; क्योंकि उन्होंने उनके कार्यों की चर्चा सुनी थी।

9 भीड़ के दबाव से बचने के लिए ईसा ने अपने शिष्यों से कहा कि वे एक नाव तैयार रखें;

10 क्योंकि उन्होंने बहुत-से लोगों को चंगा किया था और रोगी उनका स्पर्श करने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे।

11 अशुद्ध आत्मा ईसा को देखते ही दण्डवत् करते और चिल्लाते थे-“आप ईश्वर के पुत्र हैं”;

12 किन्तु वह उन्हें यह चेतावनी देते थे कि तुम मुझे व्यक्त मत करो।