सामान्य काल
पन्द्रहवाँ सप्ताह
आज के संत : संत
उत्रेक्ट के संत फ्रेडरिक
धर्माध्यक्ष, शहीद

📙पहला पाठ: इसायाह 26: 7-9, 16-19

7 धर्मी का मार्ग समतल है। तू धर्मी का पथ बराबर करता है।

8 प्रभु! हम भी तेरे नियमों के मार्ग पर चलते हुए तुझ पर भरोसा रखते हैं। हम तेरे नाम की स्तुति करना चाहते हैं।

9 मैं रात को तेरे लिए तरसता हूँ। मैं अपनी सारी आत्मा से तुझे खोजता रहता हूँ। जब पृथ्वी पर तेरे नियमों का पालन होता है, तब उसके निवासियों को पता चलता है कि न्याय क्या है।

11 प्रभु! वे तेरा उठा हुआ हाथ नहीं देखते, किन्तु वे तेरी प्रजा के लिए तेरा उत्साह अवश्य देखेंगे और उन्हें लज्जित होना पड़ेगा, जब वे तेरे शत्रुओं के लिए जलायी अग्नि में भस्म हो जायेंगे।

16 प्रभु! तेरी प्रजा संकट में तेरी शरण आती है। जब तू उसे दण्ड देता है, तो वह तेरी दुहाई देती है।

17 प्रभु! हम तेरे सामने उस गर्भवती स्त्री के सदृश थे, जो प्रसव के समय तड़पती है और अपनी पीड़ा में चिल्लाती है।

18 हम गर्भवति की तरह पीड़ा से तड़पते थे, किन्तु हमने वायु प्रसव की। हमने देश का उद्वार नहीं किया और पृथ्वी पर नेय निवासियों का जन्म नहीं हुआ।

19 किन्तु तेरे मृतक फिर जीवित होंगे, उनके शरीर फिर खड़े हो जायेंगे। तुम, जो मिट्टी में सो रहे हो, जाग कर आनन्द के गीत गाओगे; क्योंकि तेरी ओस ज्योतिर्मय है और पृथ्वी मृतकों को पुनर्जीवित कर देगी।


📕सुसमाचार: संत मत्ती 11: 28-30

28 “थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।

29 मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वाभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे,

30 क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का”।