सामान्य – काल

ग्यारहवाँ सप्ताह

आज के संत : संत मारकुस व संत मारसेल्लियन शहीद

📒पहला पाठ : 1 राजाओं 21: 17-29

17 इसके बाद तिशबी एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

18 “समारिया में रहने वाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने जाओ। वह नाबोत की दाखबारी में है। वह उसे अपने अधिकार में करने लिए वहाँ गया है।

19 उस से कहो, ‘प्रभु यह कहता हे: क्या तुम नाबोत की हत्या करने के बाद उसकी विरासत अपने अधिकार में करने आये हो? इसके बाद उस से कहो, प्रभु यह कहता है: जहाँ कुत्तों ने नाबोत का रक्त चाटा, वहाँ वे तुम्हारा भी रक्त चाटेंगे’।”

20 अहाब ने एलियाह से कहा, “मेरे शत्रु! क्या तुम फिर मेरे पास आ गये?” उसने उत्तर दिया, “मैं फिर आया हूँ, क्योंकि जो काम प्रभु की दृष्टि में बुरा है, तुमने वही करने का निश्चय किया है।

21 इसलिए मैं तुम विपत्ति ढाऊँगा और तुम्हें मिटा दूँगा। अहाब के घराने में जितने पुरुष हैं, मैं इस्राएल में से उन सब का अस्तित्व समाप्त कर दूँगा- चाहे वे दास हों, चाहे स्वतन्त्र।

22 मैंने नबाट के पुत्र यरोबआम के घराने और अहीया के पुत्र बाशा के घराने के साथ जो किया है, वही तुम्हारे घराने के साथ करूँगा; क्योंकि तुमने मेरा क्रोध भड़काया और इस्राएल से पाप कराया है।

23 ईज़ेबेल के विषय में प्रभु यह कहता है: यिज्ऱएल की चारदीवारी के पास कुत्ते ईजे़बेल को खायेंगे।

24 अहाब के घराने का जो व्यक्ति नगर में मरेगा, वह कुत्तों द्वारा खाया जायेगा और जो खेत में मरेगा, वह आकाश के पक्षियों द्वारा खाया जायेगा।”

25 अहाब की तरह कभी कोई नहीं हुआ, जिसने जो काम प्रभु की दृष्टि में बुरा है, उसे ही करने का निश्चय किया हो; क्योंकि उसकी पत्नी ईजे़बेल ने उसे बहकाया था।

26 प्रभु ने जिन अमोरियों को एस्राएलियों के सामने से भगा दिया, अहाब ने उन्हीं की तरह देवमूर्तियों का अनुयायी बन कर अत्यन्त घृणित कार्य किया।

27 अहाब ने ये शब्द सुन कर अपने वस्त्र फाड़ डाले और अपने शरीर पर टाट ओढ़ कर उपवास किया। वह टाट के कपड़े में सोता था और उदास हो कर इधर-उधर टहलता था।

28 तब प्रभु की वाणी तिशबी एलियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

29 “क्या तुमने देखा है कि अहाब ने किस तरह अपने को मेरे सामने दीन बना लिया है? चूँकि उसने अपने को मेरे सामने दीन बना लिया, इसलिए मैं उसके जीवनकाल में उसके घराने पर विपत्ति नहीं ढाऊँगा। मैं उसके पुत्र के राज्यकाल में उसके घराने पर विपत्ति ढाऊँगा।”

📙सुसमाचार : संत मती 5: 43-48

43 “तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर।

44 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।

45 इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की सन्तान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।

46 यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते?

47 और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बड़ा काम करते हो? क्या गै़र-यहूदी भी ऐसा नहीं करते?

48 इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।