चालीसा – काल
पाँचवाँ सप्ताह

आज के संत: येरुसालेमी संत सिरिल

📒 पहला पाठ: दानिएल 13 : 42 – 63

42 इस पर सुसन्ना ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा,

43 “शाश्वत ईश्वर! तू सब रहस्य और भविय में होने वाली घटनाएँ जानता है। तू जानता है कि इन्होंने मेरे विरुद्ध झूठी गवहाी दी है। इन्होंने जिन बुरी बातों का अभियोग मुझ पर लगाया है, मैंने उन में से एक भी नहीं किया- फिर भी मुझे मरना होगा।”

44 ईश्वन ने उसकी सुन ली। जब लोग उसे प्राणदण्ड के लिए ले जा रहे थे,

45 तो ईश्वर ने दानिएल नामक युवक में एक दिव्य प्रेरणा उत्पन्न की।

46 वह पुकार कर कहने लगा, “मैं इसके रक्त का दोषी नहीं हूँ”।

47 इस पर सब लोग उसकी ओर देखने लगा और बोले, “तुमहारे कहने का अभिप्राय क्या है?”

48 उसने उन में खडा हो कर कहा, ” इस्राएलियों! आप लोगों की बुद्धि कहाँ है, जो आप जाँच और पूरी जानकारी के बिना इस्राएल की पुत्री को प्राणदण्ड देते हैं?

49 आप न्यायालय लौट जायें, क्योंकि इन्होंने इसके विरुद्ध झूठी गवाही दी है।”

50 इस पर लोग तुरन्त लौट गये और नेताओं ने दानिएल से कहा, “आइए, हमारे बीच बैठिए और हमें अपनी बात बताइए; क्योंकि ईश्वर ने आप को नेताओं-जैसा अधिकार प्रदान किया है”।

51 दानिएल ने उन से कहा, “इन दोनों को एक दूसरे से अलग कर दीजिए और मैं इन से पूछताछ करूँगा”।

52 जब दोनों को अलग कर दिया गया, तो दानिएल ने एक को बुला कर उस से कहा,

53 “अधर्म करते-करते तेरे बाल पक गये हैं। अब तुझे अपने पुराने पापों का दण्ड मिलने वाला है। तू निर्दोषों को दण्ड दे कर और दोषियों को निर्दोष ठहरा कर अन्यायपूर्वक विचार किया करता था, जब कि प्रभु ने कहा है- तुम निर्दोष और धर्मी को प्राणदण्ड नहीं दोंगे। अब यदि तूने इसे देखा

54 तो हमें बता कि तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को एक साथ देखा”। उसने उत्तर दिया, “बाबुल के नीचे”।

55 दानिएल ने कहा, “इतना बडा झूठ बोल कर तूने अपना सिर गँवा दिया है! ईश्वर के दूत को ईश्वर से यह आदेश मिल चुका है कि वत तुझे दो टुकड़े कर दे”।

56 दानिएल ने उसे ले जाने की आज्ञा दे कर दूसरे को बुला भेजा और उस से कहा,

57 “तू यूदा का नहीं, कनान की सन्तान है। सौदर्य ने तुझे पथभ्रष्ट किया आर वासना ने तरा हृदय दूषित कर दिया है। तुम लोग इस्राएल की पुत्रियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते थे और वे डर के मारे तुम्हारा अनुरोध स्वीकार करती थी। किन्तु यह यूदा की पुत्री है, जो तुम्हारे अधर्म के सामने नहीं झुकी है।

58 तो, मुझे बता- तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को साथ देखा?” उसने उत्तर दिया, “बलूत के नीचे”।

59 इस पर दानिएल ने कहा, “तूने भी इतना बडा झूठ बोलकर अपना जीवन गँवा दिया है! ईश्वर का दूत हाथ में तलवार लिये, प्रतीक्षा कर रहा है। वह तुझे दो-टुकडे कर देगा और तुम दोंनों का सर्वनाश करेगा।”

60 तब समस्त सभा ऊँचे स्वर से जयकार करते हुए ईश्वर की स्तुति करने लगी, जो अपने पर भरोसा रखने वालों की रक्षा करता है।

61 दानिएल ने उनके अपने शब्दों द्वारा दोनों नेताओं की गवाही असत्य प्रमाणित की थी, इसलिए लोग उन पर टूट पड़े और

62 उन्हौंने मूसा की संहिता के अनुसार उन दुष्टों को वह दण्ड दिया, जिसे वे अपने पड़ोसी को दिलाना चाहते थे और लोगों ने दोनों का वध कर डाला। इस प्रकार उस दिन एक निर्दोष महिला की जीवन-रक्षा हुई।

63 हिलकीया और उसकी पत्नी ने अपनी पुत्री सुसन्ना के लिए ईश्वर का स्तुतिगान किया और ऐसा ही उसके पति योआकिम और उसके सब सम्बन्धियों ने किया; क्योंकि उस में कोई अनौचित्य नहीं पाया गया था।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 8 : 1 – 11

1 और ईसा जैतून पहाड़ गये।

2 वे बड़े सबेरे फिर मंदिर आये। सारी जनता उनके पास इकट्ठी हो गयी थी और वे बैठ कर लोगों को शिक्षा दे रहे थे।

3 उस समय शास्त्री और फरीसी व्यभिचार में पकड़ी गयी एक स्त्री को ले आये और उसे बीच में खड़ा कर,

4 उन्होंने ईसा से कहा, “गुरुवर! यह स्त्री व्यभिचार करते हुए पकड़ी गयी है।

5 संहिता में मूसा ने हमें ऐसी स्त्रियों को पत्थरों से मार डालने का आदेश दिया है। आप इसके विषय में क्या कहते हैं?”

6 उन्होंने ईसा की और परीक्षा लेते हुए यह कहा, जिससे उन्हें उन पर दोष लगाने का काई आधार मिले। ईसा झुक कर उँगली से भूमि पर लिखते रहे।

7 जब वे उन से उत्तर देने के लिए आग्रह करते रहे, तो ईसा ने सिर उठा कर उन से कहा, “तुम में जो निष्पाप हो, वह इसे सब से पहले पत्थर मारे”।

8 और वे फिर झुक कर भूमि पर लिखने लगे।

9 यह सुन कर बड़ों से ले कर छोटों तक, सब-के-सब , एक-एक कर खिसक गये। ईसा अकेले रह गये और वह स्त्री सामने खड़ी रही।

10 तब ईसा ने सिर उठा कर उस से कहा, “नारी! वे लोग कहाँ हैं? क्या एक ने भी तुम्हें दण्ड नहीं दिया?”

11 उसने उत्तर दिया, “महोदय! एक ने भी नहीं”। इस पर ईसा ने उस से कहा, “मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूँगा। जाओ और अब से फिर पाप नहीं करना।”