सामान्य काल
अट्ठाईसवाँ सप्ताह
आज के संत: संत लूकस सुसमाचारक
📙 पहला पाठ: 2 तिमथी 4: 10-17
10 क्योंकि देमास इस संसार की ओर आकर्षित हो गया और वह मुझे छोड़ कर थेसलनीके चला गया है। क्रेसेन्स गलातिया चला गया और तीतुस, दलमातिया।
11 केवल लूकस मेरे साथ है। मारकुस को अपने साथ ले कर आओ, क्योंकि मुझे सेवाकार्य में उन से बहुत सहायता मिलती है।
12 मैंने तुखिकुस को एफ़ेसुस भेजा है।
13 आते समय लबादा, जिसे मैंने त्रोआस में कारपुस के यहाँ छोड़ दिया था, और पुस्तक, विशेष कर चर्मपत्र लेते आओ।
14 सिकन्दर सुनार ने मेरे साथ बहुत अन्याय किया। प्रभु उस को उसके कर्मों का फल देगा।
15 तुम भी उस से सावधान रहो, क्योंकि उसने हमारी शिक्षा का बहुत विरोध किया।
16 जब मुझे पहली बार कचहरी में अपनी सफाई देनी पड़ी, तो किसी ने मेरा साथ नहीं दिया -सब ने मुझे छोड़ दिया। आशा है, उन्हें इसका लेखा देना नहीं पड़ेगा।
17 परन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की और मुझे बल प्रदान किया, जिससे मैं सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ और सभी राष्ट्र उसे सुन सकें। मैं सिंह के मुँह से बच निकला।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 10: 1-9
1 इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।
2 उन्होंने उन से कहा, “फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।
3 जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।
4 तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।
5 जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’
6 यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।
7 उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।
8 जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।
9 वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।