सामान्य काल
पन्द्रहवाँ सप्ताह
आज के संत : संत जुस्ता और संत रूफीना कुँवारी, शहीद

📙पहला पाठ: इसायाह 38: 1-8

1 उन दिनों हिज़कीया इतना बीमार पड़ा था कि वह मरने को हो गया। आमोस के पुत्र नबी इसायाह ने उसके यहाँ जा कर कहा, “प्रभु यह कहता है- अपने घरबार की समुचित व्यवस्था करो, क्योंकि तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। तुम अच्छे नहीं हो सकोगे।“

2 हिज़कीया ने दीवार की ओर मुँह कर प्रभु से यह प्रार्थना की,

3 प्रभु! कृपया याद कर कि मैं ईमानदारी और सच्चे हृदय से तेरी सेवा करता रहा और जो तुझे प्रिय है, वही करता रहा“। और हिज़कीया फूट-फूट कर रोने लगा।

4 प्रभु की वाणी इसायाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5 “हिज़कीया के पास जा कर कहो- तुम्हारे पूर्वजों का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी और तुम्हारे आँसू देखे। मैं तुम्हारी आयु पन्द्रह वर्ष बढ़ा दूँगा।

6 मैं तुम को और इस नगर को अस्सूर के राजा के हाथ से छुड़ाऊँगा और इस नगर की रक्षा करूँगा।

7 “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा। इसका चिह्न यह होगा-

8 अहाज़ की सीढ़ी पर ढलते हुए सूर्य की छाया देखो। यह छाया सीढ़ी पर उतर रही है। मैं इसे दस सोपान तक ऊपर चढ़ाऊँगा“ और जिस सीढ़ी पर सूर्य उतर चुका था, वहाँ वह दस सोपान तक पीछे हट गया।

📕सुसमाचार: संत मत्ती 12: 1-8

1 ईसा किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खेतों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्यों को भूख लगी और वे बालें तोड़-तोड़ कर खाने लगे।

2 यह देख कर फ़रीसियों ने ईसा से कहा, “देखिए, जो काम विश्राम के दिन मना है, आपके शिष्य वही कर रहे हैं”।

3 ईसा ने उन से कहा, “क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उनके साथियों को भूख लगी, तो दाऊद ने क्या किया था?

4 उन्होंने ईश-मन्दिर में जा कर भेंट की रोटियाँ खायीं। याजकों को छोड़ न तो उन को उन्हें खाने की आज्ञा थी और न उनके साथियों को

5 अथवा क्या तुम लोगों ने संहिता में यह नहीं पढ़ा कि याजक विश्राम के दिन का नियम तोड़ते तो हैं, पर दोषी नहीं होते?

6 मैं तुम से कहता हूँ- यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान् है।

7 मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ- यदि तुम लोगों ने इसका अर्थ समझ लिया होता, तो निर्दोषों को दोषी नहीं ठहराया होता;

8 क्योंकि मानव पुत्र विश्राम के दिन का स्वामी है।”