सामान्य – काल
ग्यारहवाँ सप्ताह
आज के संत : संत जूलियाना फलकोनियरी, कुंवारी, संस्थापिका
📒पहला पाठ : 2 राजाओं 2: 1,6-14
1 जब प्रभु एलियाह को एक बवण्डर द्वारा स्वर्गं में आरोहित करने वाला था, तो एलियाह एलीशा के साथ गिलगाल से चला गया।
6 एलियाह ने एलीशा से कहा, “तुम यहाँ रहो, क्योंकि प्रभु मुझे यर्दन के तट पर भेज रहा है”। उसने उत्तर दिया, “जीवन्त प्रभु और आपकी शपथ! मैं आपका साथ नहीं छोडूँगा”। इसलिए दोनों आगे बढ़े।
7 पचास नबी उनके पीछे हो लिये और जब वे दोनों यर्दन के तट पर रुक गये, तो वे कुछ दूरी पर खड़े रहे।
8 तब एलियाह ने अपनी चादर ले ली और उसे लपेट पर पानी पर मारा। पानी विभाजित हो कर दोनों ओर हट गया और वे सूखी भूमि पर नदी के उस पार गये।
9 नदी पार करने के बाद एलियाह ने एलीशा से कहा, “मुझे बताओ कि तुम से अलग किये जाने से पहले मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ”। एलीशा ने उत्तर दिया, “मुझे आपकी आत्मिक शाक्ति का दोहरा भाग प्राप्त हो”।
10 एलियाह ने कहा, “तुमने जो माँगा है, वह आसान नहीं है। यदि तुम मुझे उस समय देखोगे, जब मैं आरोहित कर लिया जाता हूँ, तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी होगी। परन्तु यदि तुम मुझे नहीं देखोगे, तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी नहीं होगी।”
11 वे बातें करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक अग्निमय अश्वों-सहित एक अग्निमय रथ ने आ कर दोनों को अलग कर दिया और एलियाह एक बवण्डर द्वारा स्वर्ग में आरोहित कर लिया गया।
12 एलीशा यह देख कर चिल्ला उठा, “मेरे पिता! मेरे पिता! इस्राएल के रथ और घुड़सवार!” जब एलियाह उसकी आँखों से ओझल हो गया था, तो एलीशा ने अपने वस्त्र फाड़ डाले
13 और वह एलियाह की चादर को, जो उसकी शरीर से गिर गयी थी, उठा कर लौटा और यर्दन के तट पर खड़ा रहा।
14 उसने एलियाह की चादर से पानी पर चोट की, जो विभाजित नहीं हुआ। वह बोला, “एलियाह का प्रभु-ईश्वर कहाँ है?” उसने फिर चादर से पानी पर चोट की और पानी विभाजित हो कर दोनों ओर हट गया और एलीशा नदी पार कर गया।
📙सुसमाचार : संत मती 6: 1-6, 16-18
1 “सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्म-कार्यों का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे।
2 “जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढोरा नहीं पिटवाओ। ढोंगी सभागृहों और गलियों में ऐसा ही किया करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ —वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।
3 जब तुम दान देते हो, तो तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है।
4 तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।
5 “ढोंगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो। वे सभागृहों में और चौकों पर खड़ा हो कर प्रार्थना करना पसन्द करते हैं, जिससे लोग उन्हें देखें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ—वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं ।
6 जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरे में जा कर द्वार बन्द कर लो और एकान्त में अपने पिता से प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता, जो एकान्त को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।
16 “ढोंगियों की तरह मुँह उदास बना कर उपवास नहीं करो।
वे अपना मुँह मलिन बना लेते हैं, जिससे लोग यह समझें कि वे उपवास कर रहे हैैं। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ—वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।
17 जब तुम उपवास करते हो, तो अपने सिर में तेल लगाओ और अपना मुँह धो लो,
18 जिससे लोगों को नहीं, केवल तुम्हारे पिता को, जो अदृश्य है, यह पता चले कि तुम उपवास कर रहे हो। तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।