सामान्य – काल

तेरहवाँ सप्ताह

आज के संत: संत प्रोसेसुस, संत मारटीनियन शहीद

📒पहला पाठ: आमोस: 3: 1-8; 4:-11-12

1 इस्राएलियों! सुनो! प्रभु तुम से, उस समस्त प्रजा से, जिसे वह मिस्र से निकाल लाया है, यह कहता हैः

2 “मैंने पृथ्वी के सब राष्ट्रों में से तुम लोगों को ही चुना है। इसलिए मैं तुम्हारे अपराधों के कारण तुम्हें दण्डित करूँगा।

3 “क्या दो व्यक्ति साथ-साथ यात्रा करेंगे, जब तक उन्होंने पहले से तय न कर दिया हो?

4 क्या सिंह जंगल में गरजता है, जब तक उसे शिकार न मिला हो? क्या सिंह-शावक अपनी माँद में गुर्राता है, जब तक उसे कुछ न मिला हो? क्या पक्षी पृथ्वी पर फंदे में पडता है, जब उस में कोई चारा नहीं हो?

5 क्या फन्दा ज़मीन पर से उछलता है, जब तक उस में शिकार न आया हो?

6 क्या नगर में सिंघे की आवाज सुनाई देगी और लोग डरेंगे नहीं? क्या नगर पर ऐसी विपत्ति आ सकती है, जिसे प्रभु ने वहाँ न भेजा हो?

7 क्योंकि प्रभु-ईश्वर नबियों, अपने सेवकों को सूचना दिये बिना कुछ नहीं करता।

8 सिंह गरजा है, तो कौन नहीं डरेगा? प्रभु-ईश्वर बोला है, तो कौन भवियवाणी नहीं करेगा?”

11 “जिस प्रकार ईश्वर ने सोदोम और गोमोरा का सर्वनाश किया था, उसी प्रकार मैंने तुम पर विपत्ति भेजी है। तुम आग में से निकाली हुई लुआठी-जैसे बन गये थे। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।” यह प्रभु की वाणी है।

12 “इस्राएल! इसलिए मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा। और क्योंकि मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा, इस्राएल! तुम अपने ईश्वर के सामने आने के लिए तैयार हो जाओ।”

13 देखो, जो पर्वतों का निर्माण करता है और हवा बहाता है, जो मनुष्य को अपना मित्र बनाता हैं, जो प्रकाश और अंधकार, दोनों रचता है और पर्वत-शिखरों के ऊपर विचरता है, उसका नाम प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर है।

📙सुसमाचार: संत मती: 8: 23 – 27

23 ईसा नाव पर सवार हो गये और उनके शिष्य उनके साथ हो लिये।

24 उस समय समुद्र में एकाएक इतनी भारी आँधी उठी कि नाव लहरों से ढकी जा रही थी। परन्तु ईसा तो सो रहे थे।

25 शिष्यों ने पास आ कर उन्हें जगाया और कहा, “प्रभु! हमें बचाइए! हम डूब रहे हैं !”

26 ईसा ने उन से कहा, “अल्पविश्वासियो! डरते क्यों हो?” तब उन्होंने उठ कर वायु और समुद्र को डाँटा और पूर्ण शान्ति छा गयी।

27 इस पर वे लोग अचम्भे में पड़ कर बोल उठे, ”आख़िर यह कौन है? वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते हैं।”