सामान्य काल
पन्द्रहवाँ सप्ताह
आज के संत : संत अपोल्लिनारिस, धर्माध्यक्ष, शहीद

📙पहला पाठ: मीकाह 2: 1-5

1 धिक्कार उन लोगों को, जो अधर्म की योजना बनाते और शय्या पर पडे हुए बुराई सोचा करते हैं! वे उठते ही ऐसा करते हैं, क्योंकि उनके हाथ में शक्ति हैं।

2 यदि वे किसी खेत के लिए लालच करते हैं, तो उसे ले लेते हैं; यदि किसी घर पर उनकी आँख लग जाती, तो वे उसे हथियाते हैं। वे मनुष्य और उसके घर को, मालिक और उसकी सम्पत्ति को अपने अधिकार में कर लेते हैं।

3 इसलिए प्रभु उन लोगों से यह कहता है- मैं तुम पर एक ऐसी विपत्ति भेजने की सोच रहा हूँ, जिसका भार तुम अपने कंधों से उतार नहीं सकोगे और फिर सीधे हो कर चल नहीं सकोगे। यह तुम्हारे लिए घोर संकट का समय होगा।

4 उस दिन लोग तुम्हारे विषय में उपहास का गीत गायेंगे और तुम लोग इस तरह विलाप करोगे- हमारा सर्वनाश हो गया है। प्रभु ने अपनी प्रजा की भूमि को विदेशियों को दे दिया। उसने विधार्मियों में हमारे खेत बाँट दिये। कौन हमें हमारे खेत लौटा सकेगा?

5 तब कोई नहीं होगा, जो चिट्ठी डाल कर तुम्हें प्रभु की सभा में विरासत दिलायेगा।


📕सुसमाचार: संत मत्ती 12: 14- 21

14 इस पर फ़रीसियों ने बाहर निकल कर ईसा के विरुद्ध यह परामर्श किया कि हम किस तरह उनका सर्वनाश करें।

15 ईसा यह जान कर वहाँ से चले गये। बहुत से लोग ईसा के पीछे हो लिये। वे सब को चंगा करते थे,

16 किन्तु साथ-साथ यह चेतावनी देते थे कि तुम लोग मेरा नाम नहीं फैलाओ।   

17 इस प्रकार नबी इसायस का यह कथन पूरा हुआ-

18 यह मेरा सेवक है, इसे मैंने चुना है; मेरा परम प्रिय है, मैं इस पर अति प्रसन्न हूँ। मैं इसे अपना आत्मा प्रदान करूँगा और यह ग़ैर-यहूदियों में सच्चे धर्म का प्रचार करेगा।

19 यह न तो विवाद करेगा और न चिल्लायेगा और न बाज़ारों में कोई इसकी आवाज़ सुनेगा।

20 यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोड़ेगा और न धुँआती हुई बत्ती ही बुझायेगा, जब तक वह सच्चे धर्म को विजय तक न ले जाये।

21 इसके नाम पर ग़ैर-यहूदी भरोसा रखेंगे।