सामान्य – काल

सातवाँ सप्ताह

आज की संत: धन्य कुँ. मरियम कलीसिया की माता

📒 पहला पाठ: प्रेरित – चरित 1 : 12 – 14

12 प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरूसालेम लौटे। यह पहाड़ येरूसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।

13 वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।

14 ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।

📙 सुसमाचार : संत योहन 19 : 25 – 34

25 ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्स के पास खडी थीं।

26 ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, “भद्रे! यह आपका पुत्र है”।

27 इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, “यह तुम्हारी माता है”। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।

28 तब ईसा ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रन्थ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, “मैं प्यासा हूँ”।

29 वहाँ खट्ठी अंगूरी से भरा एक पात्र रखा हुआ था। लेागों ने उस में एक पनसोख्ता डुबाया और उसे जूफ़े की डण्डी पर रख कर ईसा के मुख से लगा दिया।

30 ईसा ने खट्ठी अंगूरी चखकर कहा, “सब पूरा हो चुका है”। और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिये।

31 वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्स पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।

32 इसलिये सैनिकेां ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।

33 जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;

34 लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।