सामान्य काल
तैंतीसवाँ सप्ताह
धन्य कुँवारी मरियम का मंदिर में समर्पण
📙 पहला पाठ: प्रकाशना 5: 1-10
1 इसके बाद मैंने देखा कि सिंहासन पर विराजमान के दाहिने हाथ में एक लपेटी हुई पुस्तक है, जिस पर दोनों ओर लिखा हुआ है और जिसे सात मोहरें लगा कर बन्द कर दिया गया है;
2 और मैंने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत को देखा, जो ऊँचे स्वर से पुकार रहा था, “पुस्तक खोलने और उसकी मोहरें तोड़ने योग्य कौन है?”
3 किन्तु स्वर्ग में, पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जो पुस्तक खोलने या पढ़ने में समर्थ हो।
4 मैं फूट-फूट कर रोने लगा, क्योंकि पुस्तक खोलने या पढ़ने योग्य कोई नहीं मिला।
5 इस पर वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, “मत रोओ! देखो, यूदा-वंशी सिंह, दाऊद की सन्तति ने विजय पायी है। वह पुस्तक और उसकी मोहरें खोलने योग्य है।”
6 तब मैंने सिंहासन के पास के चार प्राणियों और वयोवृद्धों के बीच खड़े एक मेमने को देखा। वह मानो वध किया हुआ था। उसके सात सींग और सात नेत्र थे- ये ईश्वर के सात आत्मा हैं, जिन्हें ईश्वर ने सारी पृथ्वी पर भेजा है।
7 जब मेमने ने पास आ कर सिंहासन पर बैठने वाले के दाहिने हाथ से पुस्तक ली।
8 जब मेमना पुस्तक ले चुका, तो चार प्राणी तथा चैबीस वयोवृद्ध मेमने के सामने गिर पड़े। प्रत्येक वयोवृद्ध के हाथ में वीणा थी और धूप से भरे स्वर्ण पात्र भी- ये सन्तों की प्रार्थनाएँ हैं।
9 ये यह कहते हुए एक नया गीत गा रहे थे, “तू पुस्तक ग्रहण कर उसकी मोहरें खोलने योग्य है, क्योंकि तेरा वध किया गया है। तूने अपना रक्त बहा कर ईश्वर के लिए प्रत्येक वंश, भाष्षा, प्रजाति और राष्ष्ट्र से मनुष्ष्यों को खरीद लिया।
10 तूने उन्हें हमारे ईश्वर की दृष्टि में याजकों का राजवंश बना दिया है और वे पृथ्वी पर राज्य करेंगे।”
📕 सुसमाचार: संत लूकस 19: 41-44
41 निकट पहुँचने पर ईसा ने शहर को देखा। वे उस पर रो पड़े
42 और बोले, “हाय! कितना अच्छा होता यदि तू भी इस शुभ दिन यह समझ पाता कि किन बातों में तेरी शान्ति है! परन्तु अभी वे बातें तेरी आँखों से छिपी हुई हैं।
43 तुझ पर वे दिन आयेंगे, जब तेरे शत्रु तेरे चारों ओर मोरचा बाँध कर तुझे घेर लेंगे, तुझ पर चारों ओर से दबाव डालेंगे,
44 तुझे और तेरे अन्दर रहने वाली तेरी प्रजा को मटियामेट कर देंगे और तुझ में एक पत्थर पर दूसरा पत्थर पड़ा नहीं रहने देंगे; क्योंकि तूने अपने प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी को नहीं पहचाना।”