सामान्य काल
बिसवाँ सप्ताह
आज के संत : कुँवारी मरिया विश्व की महारानी


📙पहला पाठ: एजेकिएल 36: 23-28

23 मैं अपने महान् नाम की पवित्रता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश में कलंक लग गया है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवित्र नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

24 “मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से एकत्र कर तुम्हारे अपने देश वापस ले जाऊँगा।

25 मैं तुम लोगों पर पवित्र जल छिडकूँगा और तुम पवित्र हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवित्रता से और तुम्हारी सब देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा।

26 मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।

27 मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोग।

28 तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।


📕 सुसमाचार: संत मत्ती 22: 1-14

1 “भाइयो और गुरुजनो! अब सुनिए कि अपनी सफ़ाई में मुझे क्या करना है”।

2 जब लोगों ने सुना कि वह उन्हें इब्रानी भाषा में सम्बोधित कर रहा है, तो वे और भी शान्त हो गये। पौलुस ने यह कहा,

3 “मैं यहूदी हूँ। मेरा जन्म तो किलिकिया के तरसुस नगर में हुआ था, किन्तु मेरा पालन-पोषण यहाँ इस शहर में हुआ। गमालिएल के चरणों में बैठ कर मुझे पूर्वजों की संहिता की कट्टर व्याख्या के अनुसार शिक्षा-दीक्षा मिली। मैं ईश्वर का वैसा ही उत्साही उपासक था, जैसे आज आप सब हैं।

4  मैंने इस पन्थ को समाप्त करने के लिए इस पर घोर अत्याचार किया और इसके स्त्री-पुरुषों को बाँध-बाँध कर बंदीगृह में डाल दिया। 

5.उन्हीं से पत्र ले कर मैं दमिश्क के भाइयों के पास जा रहा था, जिससे वहाँ के लोगों को भी बाँध कर येरुसालेम ले आऊँ और दण्ड दिलाऊँ।

6.”जब मैं यात्रा करते-करते दमिश्क के पास पहुँचा, तो दोपहर के लगभग एकाएक आकाश से एक प्रचण्ड ज्योति मेरे चारों ओर चमक उठी। 

7 मैं भूमि पर गिर पड़ा और मुझे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई दी, ‘साऊल! साउल! तुम मुझ पर क्यों अत्याचार करते हो?

8 नाजरी हूँ, जिस पर तुम अत्याचार करते हो’। 

9 मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, किन्तु मुझ से बात करने वाले की आवाज़  नहीं सुनी।

10 मैंने कहा, ‘प्रभु! मुझे क्या करना चाहिए?’ प्रभु ने उत्तर दिया, ‘उठो और दमिश्क जाओ। तुम्हें जो कुछ करना है, वह सब तुम्हें वहाँ बताया जायेगा।’

11 उस ज्योति के तेज के कारण मैं देखने में असमर्थ हो गया था, इसलिए मेरे साथी मुझे हाथ पकड़ कर ले चले और इस प्रकार मैं दमिश्क पहुँचा।

12 “वहाँ अनानीयस नामक सज्जन मुझ से मिलने आये। वे संहिता पर चलने वाले भक्त और वहाँ रहने वाले यहूदियों में प्रतिष्ठित थे। 

13 उन्होने मेरे पास खड़ा हो कर कहा,”भाई साऊल! दृष्टि प्राप्त कीजिए। उसी क्षण मेरी आँखों की ज्योति लौट आयी और मैंने उन्हें देखा।

14 तब उन्होंने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के ईश्वर ने आप को इसलिए चुना कि आप उसकी इच्छा जान ले धर्मात्मा के दर्शन करें और उनके मुख की वाणी सुने;