सामान्य – काल
ग्यारहवाँ सप्ताह
आज के संत : संत योहन फिशेर, धर्माध्यक्ष शहीद संत थॉमस मोर, शहीद
📒पहला पाठ : 2 इतिहास 24: 20-25
20 ईश्वर के आत्मा ने याजक यहोयादा के पुत्र ज़कर्या को प्रेरित किया और उसने जनता के सामने खड़ा हो कर कहा, “ईश्वर यह कहता है- तुम लोग क्यों प्रभु की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हो? इस में तुम्हारा कल्याण नहीं है। तुम लोगों ने प्रभु को त्याग दिया, इसलिए वह भी तुम्हें त्याग देगा।”
21 इसके बाद सब लोगों ने मिल कर उसका विरोध किया और राजा के आदेश से उसे प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में पत्थरों से मार डाला।
22 राजा योआश ने ज़कर्या के पिता यहोयादा के सब उपकारों को भुला कर उसके पुत्र ज़कर्या को मरवा डाला। ज़कर्या ने मरते समय यह कहा, “प्रभु देख रहा है और इसका बदला चुकायेगा”।
23 वर्ष के अन्त में अमोरियों की सेना योआश पर आक्रमण करने निकली। उसने यूदा और येरुसालेम में प्रवेश कर जनता के सब नेताओं का वध किया और लूट का सारा माल दमिश्क के राजा के पास भेज दिया।
24 अरामी सैनिकों की संख्या अधिक नहीं थी, फिर भी प्रभु ने एक बहुत बड़ी सेना को उनके हवाले कर दिया; क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों के प्रभु-ईश्वर को त्याग दिया था। योआश को भी उचित दंड भोगना पड़ा। जब अरामियों की सेना योआश को घोर संकट में छोड़ कर चली गयी,
25 तो उसके दरबारियों ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रच कर उसे उसके पलंग पर मारा; क्योंकि उसने याजक यहोयादा के पुत्र का रक्त बहाया था। वह मर गया और दाऊदनगर में दफ़नाया गया, किन्तु वह राजाओं के मक़बरे में नहीं रखा गया।
📙सुसमाचार : संत मती 6 : 24 – 34
24 “कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो
एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन—दोनों की सेवा नहीं कर सकते।
25 “मै तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो—न अपने
जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की,
कि हम क्या पहनें। क्या जीवन भोजन से बढ़ कर नहीं ?
और क्या शरीर कपड़े से बढ़कर नहीं?
26 आकाश के पक्षियों को देखो। वे न तो बोते हैं,
न लुनते हैं और न बखारों में जमा करते हैं। फिर भी तुम्हारा स्वर्गिक पिता उन्हें खिलाता है। क्या तुम उन से बढ़ कर नहीं हो?
27 चिन्ता करने से तुम में से कौन अपनी आयु घड़ी भर भी बढ़ा सकता है?
28 और कपड़ों की चिन्ता क्यों करते हो? खेत के
फूलों को देखो। वे कैसे बढ़ते हैं ! वे न तो श्रम करते हैं और न कातते हैं।
29 फिर भी मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि सुलेमान
अपने पूरे ठाट-बाट में उन में से एक की भी बराबरी नहीं कर सकता था।
30 रे अल्पविश्वासियो! खेत की घास आज भर है और
कल चूल्हे में झोंक दी जायेगी। यदि उसे भी ईश्वर इस प्रकार सजाता है, तो वह तुम्हें क्यों नहीं पहनायेगा?
31 “इसलिए यह कहते हुए चिन्ता मत करो—हम क्या खायें, क्या पियें, क्या पहनें।
32 इन सब चीज़ों की खोज में ग़ैर-यहूदी लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीज़ों की ज़रूरत है।
33 तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीज़ों तुम्हें यों ही मिल जायेंगी।
34 कल की चिन्ता मत करो। कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा। आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।