सामान्य काल
वर्ष का पच्चीसवाँ रविवार
आज के संत : विल्लानोवा के संत थोमस धर्मसंघी, धर्माध्यक्ष


📙पहला पाठ: प्रज्ञा 2: 12, 17-20

12 “हम धर्मात्मा के लिए फन्दा लगायें, क्योंकि वह हमें परेशान करता और हमारे आचरण का विरोध करता है। वह हमें संहिता भंग करने के कारण फटकारता है और हम पर हमारी शिक्षा को त्यागने का अभियोग लगाता है।

17 हम यह देखें कि उसका दावा कहाँ तक सच है; हम यह पता लगायें कि अन्त में उसका क्या होगा।

18 यदि वह धर्मात्मा ईश्वर का पुत्र है, तो ईश्वर उसकी सहायता करेगा और उसे उसके विरोधियों के हाथ से छुड़ायेगा।

19 हम अपमान और अत्याचार से उसकी परीक्षा लें, जिससे हम उसकी विनम्रता जानें और उसका धैर्य परख सकें।

20 हम उसे घिनौनी मृत्यु का दण्ड दिलायें, क्योंकि उसका दावा है, कि ईश्वर उसकी रक्षा करेगा।”

📘दूसरा पाठ: याकूब 3: 16-4: 3

16 जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थ है, वहाँ अशान्ति और हर तरह की बुराई पायी जाती है।

17 किन्तु ऊपर से आयी हुई प्रज्ञा मुख्यतः पवित्र है और वह शान्तिप्रिय, सहनशील, विनम्र, करुणामय, परोपकारी, पक्षपातहीन और निष्कपट भी है।

18 धार्मिकता शान्ति के क्षेत्र में बोयी जाती है और शान्ति स्थापित करने वाले उसका फल प्राप्त करते हैं।

1 आप लोगों में द्वेष और लड़ाई-झगड़ा क्यों? क्या इसका कारण यह नहीं है कि आपकी वासनाएं आपके अन्दर लड़ाई करती हैं?

2 आप अपनी लालसा पूरी नहीं कर पाते और इसलिए हत्या करते हैं। आप जिस चीज़ के लिए ईर्ष्या करते हैं, उसे नहीं पाते और इसलिए लड़ते-झगड़ते हैं। आप प्रार्थना नहीं करते, इसलिए आप लोगों के पास कुछ नहीं होता।

3 जब आप माँगते भी हैं, तो इसलिए नहीं पाते कि अच्छी तरह प्रार्थना नहीं करते। आप अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए धन की प्रार्थना करते हैं।


📕 सुसमाचार: संत मारकुस 9: 30-37

30 वे वहाँ से चल कर गलीलिया पार कर रहे थे। ईसा नहीं चाहते थे कि किसी को इसका पता चले,

31 क्योंकि वे अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। ईसा ने उन से कहा, “मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जायेगा। वे उसे मार डालेंगे और मार डाले जाने के बाद वह तीसरे दिन जी उठेगा।”

32 शिष्य यह बात नहीं समझ पाते थे, किन्तु ईसा से प्रश्न करने में उन्हें संकोच होता था।

33 वे कफ़रनाहूम आये। घर पहुँच कर ईसा ने शिष्यों से पूछा, “तुम लोग रास्ते में किस विषय पर विवाद कर रहे थे?”

34 वे चुप रह गये, क्योंकि उन्होंने रास्ते में इस पर वाद-विवाद किया था कि हम में सब से बड़ा कौन है।

35 ईसा बैठ गये और बारहों को बुला कर उन्होंने उन से कहा, “जो पहला होना चाहता है, वह सब से पिछला और सब का सेवक बने”।

36 उन्होंने एक बालक को शिष्यों के बीच खड़ा कर दिया और उसे गले लगा कर उन से कहा,

37 “जो मेरे नाम पर इन बालकों में किसी एक का भी स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह मेरा नहीं, बल्कि उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।”