चालीसा – काल
चालीसे का दूसरा रविवार
आज की संत: धन्य रानी मरिया
📒 पहला पाठ: उत्पत्ति 22: 1 – 2, 9 – 13, 15 – 18
1 ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ”इब्राहीम! इब्राहीम!” इब्राहीम ने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
2 ईश्वर ने कहा, ”अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।”
9 जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी। इसके बाद उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँधा और उसे वेदी के ऊपर रख दिया।
10 तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।
11 किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ”इब्राहीम! ”इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
12 दूत ने कहा, ”बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो – तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।
13 इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।
15 ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर
16 बोला, ”यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ – तुमने यह काम किया : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया;
17 इसलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे।
18 तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा।”
📕 दूसरा पाठ : रोमियों 8 : 31 – 34
31 और कहना ही क्या है? यदि ईश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरुद्ध होगा?
32 उसने अपने निजी पुत्र को भी नहीं बचाया, उसने हम सबों के लिए उसे समर्पित कर दिया। तो, इतना देने के बाद क्या वह हमें सब कुछ नहीं देगा?
33 जिन्हें ईश्वर ने चुना है, उन पर कौन अभियोग लगा सकेगा? जिन्हें ईश्वर ने दोषमुक्त कर दिया है,
34 उन्हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्या ईसा मसीह ऐसा करेंगे? वह तो मर गये, बल्कि जी उठे और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो कर हमारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं।
📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस : 9 : 12 – 10
2 छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।
3 उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।
4 शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।
5 उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, “गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।”
6 उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।
7 तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, “यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।”
8 इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।
9 ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।
10 उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।