सामान्य काल
सोलहवाँ सप्ताह
आज के संत: संत जोआकिम और अन्ना धन्य कुँ. मरियम के माता-पिता
📙पहला पाठ: यिरमियाह 3: 14 – 17
14 प्रभु यह कहता हैः “विद्रोही पुत्रो! मेरे पास लौट आओ। मैं ही तुम्हारा स्वामी हूँ। मैं तुम लोगों को, सब नगरों और राष्ट्रों से निकाल कर, सियोन में वापस ले आऊँगा।
15 में तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहों को प्रदान करूँगा, जो विवेक और बुद्धिमानी से तुम्हें चरायेंगे।“
16 प्रभु यह कहता हैः “जब देश में तुम लोगों की संख्या बहुत बढ़ेगी और तुम्हारी बड़ी उन्नति होगी, तब कोई प्रभु के विधान की मंजूषा की चरचा नहीं करेगा। कोई उसे याद नहीं करेगा। किसी को उसका अभाव नहीं खटकेगा और उसके स्थान पर कोई दूसरी मंजूषा नहीं बनायी जायेगी।
17 उस समय येरुसालेम ’प्रभु का सिंहासन’ कहलायेगा। सभी राष्ट्र प्रभु के नाम पर येरुसालेम में एकत्र हो जायेंगे। वे फिर कभी अपने दुष्ट और हठीले हृदय की वासनाओं के अनुसार नहीं चलेंगे।
📕सुसमाचार: संत मत्ती 13: 18-23
18 “अब तुम लोग बोने वाले का दृष्टान्त सुनो।
19 यदि कोई राज्य का वचन सुनता है, लेकिन समझता नहीं, तब उसके मन में जो बोया गया है, उसे शैतान आ कर ले जाता है: यह वह है, जो रास्ते के किनारे बोया गया है।
20 जो पथरीली भूमि में बोया गया है: यह वह है, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता है;
21 परन्तु उस में जड़ नहीं है और वह थोड़े ही दिन दृढ़ रहता है। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है।
22 जो काँटों में बोया गया है: यह वह है, जो वचन सुनता है; परन्तु संसार की चिन्ता और धन का मोह वचन को दबा देता है और वह फल नहीं लाता।
23 जो अच्छी भूमि में बोया गया है: यह वह है, जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है-कोई सौ गुना, कोई साठ गुना और कोई तीस गुना।”